आज अचानक कैलाश गौतमजी की एक कविता हाथ लग गयी। इसे पढ़कर मैं हैरत में पड़ गयी। मुझे नहीं मालूम कि इसे किस संदर्भ में उन्होंने लिखा था लेकिन मुझे विश्वास है कि आज भी आपको अपने आस-पास ऐसे चरित्र मिल सकते हैं। लीजिए आप लोगों के लिए प्रस्तुत है ये मंचीय कविता :
गिरगिट को भी आपने पीछे छोड़ा रंग बदलने में गुड़िया बनकर बुढ़िया निकली खैर नहीं है बप्पारे नाक कटाकर बड़ी बहू अब नथ गढ़वाने बैठी हैं क्या कोई सुख-दुख बाँटेगा जैसा आपने बाँटा है कितना बड़ा पेड़ था कल तक अब है बेट कुल्हाड़ी का |
हामरे आस पास तो ऐसे चरित्र है.. इसलिए पढ़कर मुस्कुराये भी हम तो.. इसी बात पे कैलाश गौतम जी को धन्यवाद् और साथ ही आपको भी.. पढवाने के लिए..
ReplyDeleteसचमुच बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...पढ़वाने के लिए आभार ...
ReplyDeleteबहुत ही धारदार प्रस्तुति है। पढ़वाने का आभार।
ReplyDeleteभाई जी की महिमा सुनकर हम हतप्रभ हैं।
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ब्लोगिंग की दुनिया में आपको सक्रिय देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। कैलाश गौतम जी हिन्दी और भोजपुरी के बडे और सशक्त गीतकार थे। अभी एकाध साल पहले ही वे एकाएक हमसे बिछुड गये। इस गीत ने फिर से उनकी यदें ताजा कर दी हैं। कैलाश गौतम जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteकैलाश गौतम का सटीक प्रेक्षण और कटाक्ष ,आपकी प्रस्तुति -आनंद आ गया ..
ReplyDeleteखुद भी लिखती रहिये और सिद्धार्थ जी को भी लिखाती रहिये ...