आजकल मैं बड़ी दुविधा में हूँ। जबसे स्मृति ईरानी ने एक ज्योतिषी से अपना हाथ दिखा लिया है, बल्कि जबसे उनके द्वारा ज्योतिषी से हाथ दिखाने का प्रचार इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया ने कर दिया है तबसे तमाम प्रगतिशील और वैज्ञानिक टाइप लोग इसपर तमाम लानत-मलानत करने पर उतर आये हैं। रोज-ब-रोज देश की छवि मटियामेट हो जाने से चिन्तित लोगों को देखकर मेरा मन भी धुकधुका रहा है। इस बहस में कहाँ रखूँ अपने आप को? हमने जन्तु विज्ञान में परास्नातक किया है। मतलब हाईस्कूल, इंटर, बी.एस-सी. और एम.एस.सी. सबकुछ `साइंस-साइड' से। लेकिन मेरी सभी परीक्षाओं का फार्म भरवाने से पहले अपने खानदानी पंडितजी जो ज्योतिष के प्रकांड विद्वान माने जाते हैं उनसे पापा ने शुभ-मुहूर्त जरूर दिखवाया है। यह बात भी सत्य है कि हम बिना फेल हुए हर साल अच्छे नंबर से पास भी होते रहे हैं। ऐसे में क्या आप एक विज्ञान के विद्यार्थी से यह उम्मीद करते हैं कि वह इतना अंधविश्वासी होगा…?
जन्म से लेकर आजतक हमारा कोई महत्वपूर्ण कार्य पंडितजी की राय या अनुपस्थिति में नहीं हुआ है। हम तो यही देखते आये हैं कि घर में कोई शुभ-कार्य करना है, यहाँ तक कि कहीं दूर की यात्रा पर भी जाना है तो बिना पंडितजी से शुभमुहूर्त दिखाये नहीं जाते है। शिक्षा- दीक्षा रही हो या विवाह का योग; दूल्हे की दिशा-दशा का अनुमान लगाना हो या शारीरिक सौष्ठव जानना हो; वह नौकरी-शुदाहोगा, बेरोजगार होगा या किसी व्यावसायिक या उद्योगपति घराने से संबन्धित होगा; यह सब ज्योतिषी जी से ही पूछा जाता था। मेरा दाम्पत्य-सुख निम्न, मध्यम या उत्तम कोटि का होगा; इन सब बातों की जानकारी के लिए हम ज्योतिष का ही सहारा लेते रहे।
विवाह हुआ नहीं कि घरवाले संतान-योग की जानकारी के लिए और होने वाली संतान सर्वगुण-संपन्न और योग्य ही हो इसके लिए ‘पंडीजी’ के बताये अनुसार अनुष्ठान, स्नान–दान, पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि हम बिना विज्ञान-गणित लगाये निरंन्तर करते रहे हैं। सच पूछिये तो हमें अपना वर्तमान और भूत-भविष्य जानने की उत्कंठा आजतक रहती है। मैं यह सब करते-धरते बेटी से बहू भी बन गई लेकिन अपना भी कोई चान्स राजनिति में है कि नहीं यह जानने की ललक आज भी है। घर पर आने-जाने वाला कोई व्यक्ति जो यह बता दे कि उसे ज्योतिष की कुछ भी जानकारी है तो उसे पानी पिलाने से पहले अपनी हथेली दिखाने बैठ जाती हूँ। कई बार तो अपनी इस हरकत के लिए डाँट भी खा चुकी हूँ। मगर क्या करूँ मन के आगे मजबूर हूँ। यह मन बहुत महत्वाकांक्षी होता है जो उसे कभी- कभी अंधविश्वासी होने पर भी मजबूर कर देता है। इस अंधविश्वास में कालांतर सुख हो ना हो मगर तात्कालिक आनंद बहुत होता है। कभी मौका मिले तो आजमाकर देखिए।
हमारे ज्योतिषी के कहे अनुसार तो अबतक की प्रायः सभी भविष्यवाणी सही साबित हुई है। ज्योतिषशास्त्र द्वारा जो चाँद और सूरज की चाल की गणना करके ग्रहण आदि का समय बताया जाता है वह भी बिल्कुल सटीक बैठता है। जब हमने कंप्यूटर का नाम भी नहीं सुना था तब भी ग्रहण लगने पर कब नहाना है और कब दान-पुन्न करना है यह पंचांग देखकर पापा बता देते थे; और हम लोग मनाही के बावजूद छत पर जाकर राहु-केतु के मुंह में समाते और निकलते चाँद मामा और सूरज देवता को देख भी लेते थे। सदियों से चली आ रही हमारी परम्पराएं भी तो जन्म से लेकर शादी-ब्याह और मृत्युपर्यन्त कर्मकांड तक बिना पंचांग देखे पूरी नहीं होती है। इसके बिना मन को संतोष और हृदय को आश्वस्ति कहाँ मिलती है?
अब हम तो आजतक यही जानते है कि पंडितजी ने बताया है कि विवाह से पूर्व “हल्दी” का लेप लगाने की रस्म है, तो है। हमें हर हाल में यह रस्म अदा करनी है। नहीं किया तो अशुभ हो जायेगा। इस प्रक्रिया में कितना विज्ञान है, कितना ज्योतिष है और कितनी चिकित्सा यह कभी नहीं सोचा। उस समय हम तो शुभ-अशुभ मानते हैं। विज्ञान तो यही कहता है कि किसी तरह की बीमारी या साइड इफेक्ट से बचने के लिए हल्दी का प्रयोग अनिवार्य है। क्योंकि हल्दी बेस्ट एन्टीसेप्टिक होता है। विज्ञान को समझने में हमें थोड़ी देर लगेगी लेकिन पंडितजी की बात हम तत्काल समझ जाते हैं। इसका कारण यह है कि हमारे तो छठी के दूध में ही ज्योतिष शास्त्र मिला हुआ है।
(रचना त्रिपाठी)