राज्य सरकार को कहें या संबंन्धित विभागीय अधिकारियों को सभी गान्धीजी के बन्दर हो गये हैं। नाक, कान और आँख सब बंद कर के बैठे हुए है। इनके दिमाग की बत्ती तब जलती है जब कोई दुर्घटना घटित हो जाती है।
इन्दिरा नगर लखनऊ के सेक्टर-१६ में पार्वती पैलेस अपार्टमेन्ट के ठीक सामने एक बिजली का खम्भा जो लोहे का बना हुआ है, उसका निचला हिस्सा लगभग २ फिट तक जंग लगकर पूरी तरह से जर्जर हो चुका है; और कभी भी गिर सकता है। यह खम्भा इसके आगे पीछे लगे हुए खंभों और ऊपर तने हुए तारों के मकड़्जाल के सहारे टिका हुआ है। इसकी शिकायत बिजली विभाग को हमने करीब दो हफ्ते पहले टेलीफोन के माध्यम से किया था। एसडीओ साहब ने इसे फौरन ठीक कराने का आश्वासन भी दिया। एक-दो दिन इंतजार करने के बाद हमने फिर से फोन किया। उन्होंने फिर कहा, “बस आज हर हाल में ठीक हो जायेगा”, लेकिन वह ‘आज’ आज तक नहीं आया।
फिलहाल अब तो एसडीओ साहब का फोन भी नही लगता, अगर गलती से लग भी गया तो वह भूलकर भी नहीं उठाते। थक-हार कर हमने एक शिकायती पत्र सोसाइटी के सेक्रेट्री की ओर से लिखवाकर प्रबन्ध निदेशक मध्यान्चल विद्युत वितरण निगम को भेजवा दिया है।
अब तो जब भी बाहर निकलती हूँ तो मेरा ध्यान उस खम्भे पर ही टिक जाता है। जहाँ दो-तीन गाड़िया खड़ी रहती है और रोज सुबह स्कूली रिक्शावाला वही खड़ा करके बच्चों को बैठाता है। उस खंभे को ठीक करवाने की लागत कुछ हजार होनी चाहिये। कितना बड़ा कलेजा है इन लोक सेवकों का जो कार्य हजारों में हो सकता है उसके लिए ये लाखों खर्च करने की तैयारी करके बैठे हुए है।
आये दिन अखबारों में खबर छपती है कि बिजली हादसे में अमुक की जान गयी। पोल में करंट उतरा। आदि-आदि। अब शायद यहाँ से यह खबर छपने वाली है कि बिजली का तार पोल तोड़कर नीचे गिरा। जाने कितने और इस हादसे के शिकार होंगे? देखना है उसके बाद प्रदेश सरकार जान-माल के हानि की कितनी कीमत लगाती है?
कल यानी २३ ता.के अख़बार में पढ़ा कि करंट लगने से दिल्ली में एक फिल्ममेकर ‘आनन्द भास्कर मोर्ले’ जिसकी उम्र महज ३३ साल थी, कि मॄत्यु हो गयी। मॄत्यु का कारण एक दुकानदार की लापरवाही जिसने अपने दुकान में लगे ए.सी. के कम्प्रेशर का नंगा तार ही बाहर छोड़ दिया था जिसके संपर्क में लोहे का गेट आ गया। गेट खोलने के लिए छूते ही बेचारे वहीं ढेर हो गये।
यह छोटी-छोटी असावधानियाँ कितनी बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है जिसका खामियाजा आम पब्लिक और कितने बेकसूर लोगों को अपनी जान गवाँ कर भरना पड़ता है।
क्या जनता के ये कथित सेवक नौकरशाह इस प्रकार की खतरनाक स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं जहाँ राह चलता कोई भी व्यक्ति अचानक काल के गाल में समा सकता है? क्या वास्तव में दुर्घटना घट जाने के पहले ही ऐसे लापरवाह कृत्य के लिए उनके विरुद्ध आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए?
(रचना)