उन्नीस साल बाद अपने ससुराल से जिस उपाधि की मुझे प्रतीक्षा थी आख़िरकार वह मिल गयी। यह जानकर कि 'मैं बिल्कुल अपनी सास जैसी हो गयी हूँ' एक ऐतिहासिक सफलता मेरे हाथ लगी है।
दिल बाग-बाग हो गया, खुशी के मारे आँखें छलक आईं। ये बात अलग है कि लोग मेरे रुआँसे चेहरे से मेरी भीतरी खुशी को आँक नहीं पाये और हैरान होकर मुझे चुप कराने लगे। सच कहूँ, तो उन्हें क्या पता! यह मेरी वर्षों की लगन और कड़ी मेहनत की कमाई है।
एक राज की बात और बता दूँ, शायद सासू-माँ सुनती तो उन्हें नागवार गुजरता इसलिए मेरे मिस्टर ने मेरे कानों में चुपके से बताया कि– "वैसे तो तुम अपनी सास से कई गुना आगे हो पर मैं इस बात का खुलासा नहीं कर सकता, अम्मा सुनेगी तो बुरा मान जाएगी।" बात सही भी है, अबतक उनसे आगे निकल जाने की बात घर में किसी ने भी सोचा न होगा। उनके जीते-जी फिर मैं भला कैसे इसे जाहिर कर सकती हूँ! इसलिए यह बात सिर्फ मेरे और इनके बीच छिपी हुई है।
(रचना त्रिपाठी)