शांता, देखती हूँ, तुम दिनोदिन सूखती जा रही हो? ये बात सही है कि बच्चों का ख्याल तुम नहीं रखोगी तो कौन रखेगा! पर जरा सोचो, खाली पेट काम करते-करते बीमार पड़ गई तो क्या होगा? अभी जो तुम्हारे भीतर ऊर्जा संचित है वही तो दिन पर दिन खर्च हो रही है। लेकिन इसकी प्रतिपूर्ति कैसे होगी?
सुबह छः बजे घर से निकल लेती हो दोपहर के दो बजे तक सिर्फ चाय पी-पीकर अपना पेट लेसती रहती हो। ऐसे कबतक चलेगा? ये रोज-रोज चाय के साथ की बिस्किट और ब्रेड घर लेकर चली जाती हो। कभी-कभार खुद भी तो खा लिया करो। तुम्हारी देह में जायेगा तो भी तुम्हारे बच्चों के काम आएगा... तुम्हे कुछ देर और काम करने की शक्ति मिलेगी।
और उसका क्या? ... जबतक तुम्हारी हड्डी में दम है तभी तक तेरी राह ताकेगा... नहीं तो, ले आयेगा घर में दूसरी ब्याह कर।
(रचना त्रिपाठी)