प्रदेश सरकार की मेहरबानियों पर पलता-बढ़ता हमारा समाज और इस समाज के युवा वर्ग की हालत देखकर मन उद्विग्न है। यह प्रचार हो रहा है कि उनकी पढ़ाई के लिए कितने खर्चे अपने सिर पर ढो रही है उत्तर प्रदेश की सरकार। इन बच्चों में पढ़ाई के प्रति ललक बनी रहे इसके लिए इन्हें कितने तोहफे बांट चुकी है। लेकिन सच्चाई यह है कि नकल की खुली छूट देकर बोर्ड परीक्षाओं में सामान्यतः सत्तर प्रतिशत से ऊपर अंक देने के बाद एक-एक घर में चार-चार लैपटॉप और टैबलेट बाँटना कहीं से जायज नहीं कहा जा सकता। राजनीति के तोहफे इसी प्रकार लुटाये जाते है हमारे देश के बेरोजगार युवाओं पर। सरकार अब उन्हें आसान नौकरी का भी तोहफा देने की तैयारी कर चुकी है।
उत्तर-प्रदेश में ग्राम पंचायत अधिकारियों की भर्ती होने जा रही है। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा के अंको के आधार पर मेरिट सूची तैयार की जायेगी और रिक्तियों के दस-बीस गुना अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए काल कर लिया जायेगा। जिले के सरकारी अधिकारी इनका इंटरव्यू लेंगे और उसमें प्राप्त अंकों के आधार पर नियुक्ति कर दी जाएगी। यानि कोई लिखित प्रतियोगी परीक्षा नहीं करायी जाएगी। एक अभ्यर्थी चाहे जितने जिलों से आवेदन कर सकेगा और अपना भाग्य आजमा सकेगा। इस भर्ती प्रक्रिया में बेरोजगार युवाओं से अधिक तैयारी और दौड़-धूप उनके अभिभावक कर रहे हैं। जिसकी जितनी ऊँची पहुँच और जितनी भारी जेब है वह उतना अधिक आश्वस्त है।
त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के सबसे निचले स्तर की इकाई ग्राम पंचायत के सचिव की कुर्सी की शोभा बढ़ाने वाले इन ग्राम पंचायत अधिकारियों की सरकारी योजनाओं को ग्राम स्तर पर लागू करने में बहुत अहम भूमिका होती है। इसलिए इस पद के लिए एक से बढ़कर एक बोली लगायी जा रही है। सुना है एक कैन्डीडेट पर करीब बारह लाख रूपए तक की बोली लग चुकी है। देखना रोचक होगा कि तृतीय श्रेणी के इस पद के लिए बारह लाख देने वाले ‘बेरोजगार’ की हैसियत क्या होगी? जो बेरोजगार बारह लाख नहीं दे पायेगा वह अपने आप को जीवन भर कोसता रहेगा। अब इस बारह लाख के लिए उन्हें या उनके घर वालों को जाने कौन-कौन से कार्य करने पड़ेंगे- चोरी, डकैती लूट, हत्या और आत्महत्या जैसे अनेक प्रयासों के वे भागीदारी बनेंगे।
ऐसे युवाओं को शुरू से ही भ्रष्टाचार और निकम्मेपन की राह पर भटकाने के अलावा हमें उनके हित की कोई बात नही दिख रही। इन शर्तों पर भी यदि भर्ती प्रक्रिया सम्पन्न हो जाती है तो इन ग्राम पंचायत अधिकारियों के हाथों हमारा गांव और समाज किस तरह का विकास कार्य कर पाएगा?
प्रदेश सरकार ऐसे में बेरोजगारों को रोजगार देने जा रही है, या गोंवों के विकास के लिए एक प्रतिबद्ध कर्मचारी? बारह लाख देने के बाद वह बेरोजगार कैसे विकास का कार्य करेगा? इस पर जरा एक बार हम सबको विचार करना चाहिए और इस भर्ती प्रक्रिया की जड़ों को तलाशना चाहिए। जो सरकार अपने प्रशासनिक तंत्र में योग्य और प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों के निष्पक्ष चयन को प्राथमिकता देने के बजाय नकलची और जुगाड़ू लड़कों की नकारा फौज भर्ती करने पर उतारू हो उससे और क्या उम्मीद की जा सकती है?
ऐसा कहा गया है कि मेहनत के फल मीठे होते हैं। लेकिन यह कैसा फल है? जिसमें हमें न तो मेहनत नजर आ रही है और ना ही ईमानदारी नाम की कोई चीज। यह सरकार तो बेरोजगार युवाओं के साथ खिलवाड़ करती नजर आ रही है। एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवा मुख्यमंत्री के हाथों में चलती सरकार से क्या यही उम्मीद थी? उन्हें अपने प्रदेश के युवाओं के साथ इस तरह का भद्दा मजाक नहीं करना चाहिए। यह सस्ती लोकप्रियता का हथकंडा प्रदेश और इसके युवाओं को ले डूबेगा। तो क्या वह गद्दी बची रहेगी जिसे बनाये रखने के लिए यह आत्मघाती राह चुनी जा रही है।
क्या किसी न्यायालय की दृष्टि इस बड़ी धांधली की साजिश पर पड़ने का समय नहीं आ गया जो समय रहते इसको रोकने के लिए प्रभावी कदम उठा सके? नौकरशाही क्या इतनी कमजोर और डरपोक हो गयी है जो साफ-साफ दिख रही अंधेरगर्दी को आगे बढ़ाने में बिल्कुल संकोच नहीं कर रही है? एक एक साफ-सुथरी प्रतियोगी परीक्षा कराकर योग्य और मेहनती अभ्यर्थियों का चयन करने में हमारा तंत्र क्या बिल्कुल अक्षम हो चुका है? पिछले चार-पाँच सालों में टी.ई.टी., बी.टी.सी., टी.जी.टी., और शिक्षकों की नियुक्ति सम्बंधी तमाम प्रकरणों को देखने से तो यही महसूस हो रहा है।
(रचना)