व्यर्थ जल रही
बिजली
और पंखों का
स्विच
बार-बार
ऑफ कर देती हैं!
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
घिसा हुआ साबुन
टूथ पेस्ट की
पिचकी हुई ट्यूब
डब्बे की तली से
लिपटा घी
सब न जाने
कैसे सोख लेती हैं!
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
गैस चूल्हे पर
चढ़ी
दो-दो तीन-तीन
रोटियां
एक साथ
झटपट सेंक लेती हैं!
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
आंधी-पानी की
गड़गड़ाहट
की आहट
मौसम के करवट
बदलते ही
कैसे भांप लेती हैं!
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
छत पर टँगे
कपड़े
धान गेंहू की
पथार
अचार की गगरी
और साथ में
घर के
बड़े-बुर्जगों की
फटकार
सब एक साथ
समेट लेती हैं!
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
देश-दुनिया की
ख़बर से बेख़बर
सुबह की चाय
अख़बार के साथ
नहीं पीती
फिर भी
सबके चेहरे
जाने कैसे पढ़ लेती हैं!
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
गोबर-मिट्टी से
दिन-भर
लीप-पोत कर,
यहाँ-वहाँ पड़े
आरामतलबी के
शिकार
घरेलू वस्तुओं को
करीने से
सजा के
कच्चे मकानों में
पक्का घर
जाने कैसे बना लेती हैं!
सचमुच -
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।
(रचना त्रिपाठी)
कम अक्ल औरतें ना होंं तो अक्ल वाले आदमियों के घर ना चलें :)
ReplyDeleteलाजवाब।
☺️��
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