प्रोमोशन में आरक्षण संबंधित 2006 का फैसला बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ते हुए भारतीय संविधान की जय बोल दी। इससे हमें इस देश की न्याय व्यवस्था और अपनी सासू माँ की पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुपालन के लिए लागू अनुशासन कुछ एक जैसा प्रतीत होता है।
घर में पूजा-पाठ, तीज-त्यौहार और मांगलिक कार्यों के विधि-विधान को लेकर वो बहुत कठोर हैं। लेकिन यदि ऐसे कार्यक्रम में परिस्थिति वश किसी पद्धति को पूरा करने में कोई बाधा आ जाती है तो वे उसका दूसरा विकल्प जरूर खोज लेती हैं। इससे स्थापित नीति का उलंघन भी नहीं होता और उनका इकबाल भी कायम रहता है।
कर्मकांड कराने वाले पुरोहित तो इस लचीलेपन के फन में इतने माहिर होते हैं कि भारतीय संविधान भी शर्मा जाय। इष्ट देवता के लिए यजमान जो वस्त्र नहीं ला सके तो देवता को वस्त्र के रूप में रक्षा-सूत्र पहना देते हैं।
पूजन सामग्री भी गरीब यजमान के लिए कुछ तो अमीर के लिए कुछ और हो जाती है। भोले शंकर को खुश करने के लिए घृत, शहद, दही, शर्करा और दूध से अभिषेक करते हुए घण्टों मंत्रोच्चार किया जाता है तो गरीब का एक लोटा जल भी उसके भक्तिभाव को प्रकट कर देता है।
(रचना त्रिपाठी)
No comments:
Post a Comment
आपकी शालीन और रचनात्मक प्रतिक्रिया हमारे लिए पथप्रदर्शक का काम करेगी। अग्रिम धन्यवाद।