Friday, April 4, 2014

अक्स

आज अचानक ऐसा लगने लगा जैसे मेरी बेटी मुझसे कुछ कह रही है-   माँ तू मुझमें

ऐ माँ तू मुझमे
खुद को देख ले..

मेरी बेवकूफियों  पर             
तू फिर से
नादाँ हो ले

मेरी बढ़ती उम्र के साथ
तू फिर से
जवाँ हो ले

मेरी आँखों में सजा के

तू अपने सपने

साकार कर ले

ऐ माँ...

(रचना त्रिपाठी)

 

7 comments:

  1. माँ बेटी का यह संवाद कितना सुन्दर है ,सीधे सादे शब्दों में दिल तक जाती बात

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  2. बेटियां वह आईना है जिसमे माँ का वजूद छिपा है , उसका बचपन , युवावस्था , सपने सब !

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 05/04/2014 को "कभी उफ़ नहीं की
    " :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1573
    पर.

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  4. भावपूर्ण प्रस्तुति| बेटी माँ का ही अक्स अधिकतर होती है |

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  5. आपने पुत्री को माँ की आत्मा कहा है -बिलकुल सच है यह !

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  6. सुंदर भाव पूर्ण रचना.

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  7. भाव पूर्ण साधो ...

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