आया है मुझे फिर याद वो बचपन के दिनों का जादुई बाइस्कोप; जो बच्चों को लुभाने के लिए एक बंद बक्से में कुछ भारतीय संस्कृति की धरोहर और परम्पराओं से जुड़ी अच्छी तस्वीरों को इकठ्ठा कर बहुत खूबसूरत और सुसज्जित ढंग से माला की तरह पिरोये हुए रहता था। बाइस्कोप वाला आता था और रंगीन बक्से को अपनी पीठ से उतार कर गाँव के बीचो-बीच एक स्टैंड पर लगाकर भोंपू बजाना शुरु कर देता था। जिससे गाँव के सभी बच्चे उसके इर्द-गिर्द एकत्रित हो जाते।
बाइस्कोप वाला बक्से के भीतर झांकने के लिए बने झरोखों का ढक्कन खोल देता था और हम सभी अपनी आँखों को उन झरोखों से सटाकर बैठ जाया करते थे। उस बंद बक्से के अंदर तस्वीरों की एक लड़ी चलती जिनके नजारों को हम बच्चे कौतूहल से देखते और अपने कानों से बाइस्कोपवाले की रोचक आवाज में उनका वर्णन सुनते- ‘दिल्ली का कुतुबमिनार देखो.. और बम्बई का मीनाबाजार देखो..ये आगरे का ताजमहल... घर बैठे सारा संसार देखो।’ घुटनों के बल बैठकर उस जादुई बक्से में घूमती पूरी दुनिया की सैर बस कुछ ही मिनटों में करके हम बहुत खुश होते थे। इसी खुशी में अपने-अपने घरों से रूपये/ अनाज इत्यादि लाकर उस जादूगर को दे जाते थे जो उन्हें कुछ पल के लिए सुनहरे सपने दिखा जाया करता था। उसके बाद वह बोलता- बच्चों, तमाशा खतम पैसा हजम अब अपने अपने घर जाओ।
जब चुनाव नजदीक आता है तो देश में कुछ इसी तरह के दृश्य नजर आने लगते हैं। एक बार फिर चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है और सभी राजनैतिक दल अपना-अपना घोषणा पत्र बाइस्कोप के रूप में तैयार कर लिए हैं। जगह-जगह रैलियां होने लगीं हैं। सियासी दलों में जनता को लुभाने की होड़ मची हुई है। वोट पाने की लोलुपता में राजनैतिक मूल्यों का स्तर गिरने लगा है। कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इनके आँख का पानी मर चुका है। लोग भी जानते है कि कौआ चला हंस की चाल फिर भी उमड़े जा रहे हैं। विकल्प भी क्या है? सोचते होंगे कि एक बार इन्हें सुनने और देखने में क्या जाता है..।
आम आदमी बच्चों की तरह सभी दलों का चुनावी बाइस्कोप देखने के लिए कौतूहल से भरा हुआ है। नयी उमर के नये मतदाता तो और भी उत्साहित हैं। चुनावी अभियान तो रोचक होता ही है; जिसमें किस्म-किस्म के नारे लगाकर; डायलॉग बोलकर; और गाना-गाकर विकास और जनहित का मॉडल प्रस्तुत किया जाता हैं। जनता जानती है कि सियासी बाइस्कोप की खुमारी सिर्फ चुनाव होने तक है, आगे वही ढाक के तीन पात रहेंगे। चुनाव खत्म होने पर सियासी चालबाज यही कहने वाले हैं कि चुनाव खतम और वोट हजम। फिर मिलेंगे अगले पांच साल बाद। तबतक के लिए सायोनारा।
(रचना त्रिपाठी)
सही है। लगता तो यही है।
ReplyDeleteबहुत सटीक उदाहरण दिया है ।
ReplyDeleteमेला है! कुम्भ बारह में लगता है, ये पांच में। उसमें महंत-मण्डलेश्वर होते हैं; इसमें नेता लोग!
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