Monday, July 8, 2013

लंपट के नाम एक संदेश

बहुत दिनो से मन में कुछ सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं। सोच रही हूँ इसे निकाल ही दूं..। सत्याथमित्र पर पोस्ट की गयी कहानी ‘लंपट’ के मुख्य पात्र प्रोफेसर आदित्यन के दृष्टिकोण से तो भारतीय संस्कृत में विवाह परंपरा  सबसे बोरिंग सभ्यता हो जाएगी। क्यों, है कि नहीं? जैसा लेखक ने पश्चिमी सभ्यता में गर्लफ्रेंड के बारे में लंपट महाशय का ‘एलीट’ विचार प्रस्तुत किया है उसे यदि भारतीय सामाजिक पृष्ठभूमि  में गर्लफ्रेंड के स्थान पर पत्नी को रख कर देखा जाय तो क्या यही सच्चाई उभर कर सामने आती है? बात तो यही हुई न..?

लेकिन नहीं, लंपट महाशय! स्त्री- पुरुष के संबंध  मात्र एक शरीर तक सीमित नहीं है बल्कि इससे भी आगे एक दुनिया है जहाँ स्त्री-पुरुष या पति-पत्नी एक दूसरे से सिर्फ शारीरिक ही नही, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से भी जुडे होते हैं और इसी से परिवार और समाज की रचना होती है। हमारा देश  तो प्रेम, त्याग और समर्पण का एक जीता-जागता उदाहरण है। भारतीय सामाजिक परिवेश में इस परम्परा के जरिये ही स्त्री-पुरुष के रिश्तों की एक मजबूत नींव का निर्माण होता है। हम ये नही कह सकते कि हमारे देश में पूरी तरह ऐसे लोग नहीं हैं । यहाँ भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनके अंदर इस तरह कि कुंठाएं मौजूद है। बहुत से नराधम हमारे समाज में भी है जो औरत को सिर्फ भोग कि वस्तु समझते हैं और शायद यही विचार उन्हें तरह-तरह के यौन-अपराध करने को प्रेरित करते हैं।

तो लंपट महाशय! आपके विचार और आपकी सभ्यता आपको मुबारक हो...।

(रचना त्रिपाठी)

5 comments:

  1. मुझे बहुत खुशी है आपने मौन तोडा -मैंने सिद्धार्थ जी की इंगित कहानी और पात्रों के चरित्र चित्रण में लेखक के अंतर्द्वन्द्व को महसूस किया था -मनुष्य की नैतिकता भी समय -काल सापेक्ष है! कोई आत्यंतिक सत्य यहाँ भी नहीं है . हाँ निजी तौर पर "जो जस भाव करे तस तोई " मगर सामाजिक स्वीकार्यता हो ही यह आवश्यक नहीं !

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  2. मैं कई बार लिखती हूँ कि सिर्फ शारीरिक आवश्यकता के लिए सम्बन्ध बनाये जाए तो विधवाओं , सैनिकों , या जिन पति पत्नी को विभिन्न कारणों से एक दुसरे से दूर रहना पड़ता है , उन सभी को लम्पट हो जाना चाहिए ....मगर ऐसा होता नहीं है , जो अदृश्य डोर उनके बीच होती है , वह शरीर से परे है !

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  3. इससे भी आगे एक दुनिया है जहाँ स्त्री-पुरुष या पति-पत्नी एक दूसरे से सिर्फ शारीरिक ही नही, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से भी जुडे होते हैं और इसी से परिवार और समाज की रचना होती है।

    बिल्कुल सही कथन है आपका, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. अच्छी प्रतिक्रिया कहानी पर। :)

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  5. bahoot khub..:)

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