Saturday, June 6, 2009

हरा ही हरा… पर गाय ने नहीं चरा !? :(

सत्यार्थ के मुण्डन के उद्देश्य से गाँव जाना हुआ। करीब दस दिनों के बाद घर वापस आकर देख रही हूँ कि आस-पास काफी कुछ बदल गया है।

मुण्डन नहीं कर्तन हुआ जी.. बेटे के सिर पर उग आयी फसल तो परम्परा के अनुसार कटवा- छँटवा कर ‘कोट माई’ के स्थान पर चढ़वा दिया। लेकिन इस अवधि में यहाँ घर के चारो तरफ खूब हरियाली उग आयी है- खर पतवार की। अवांछित घास-पात की बढ़वार से सब्जियाँ तो उसमें खो ही गयी हैं। घर के अंदर से लेकर बाहर तक और लॉन से लेकर किचेन गार्डेन तक हरा ही हरा दिख रहा है। जिस लॉन की हरियाली बनाये रखने के लिए मई के महीने में पानी दे-देकर मैं थक गयी थी, आज उसी लॉन में एक फिट लम्बी घास आ गयी है।

किचेन गार्डेन की हालत तो देखने लायक है। इसको गाय से बचाने के लिये महीनों पहले मेरे श्रीमान जी ने क्या-क्या जतन नहीं किए थे। गेट की सॉकल ठीक कराने के लिए लोक निर्माण विभाग को पत्र लिखा। नहीं बन सका तो उसे तार से बांधा, ईंट का ओट लगाया ताकि गेट को धकियाकर वह ‘शहरी बदमाश’ गाय अंदर न आ सके। लेकिन आज मन होता है कि गेट को खोलकर गाय-भैंसों को दावत दे दूँ। शायद मेरा काम थोड़ा हल्का ही कर जाँय। लेकिन अब तो गाय भी आने से रही। बाहर की सड़क पर ही अघा रही है।

फूलों में घास या घासों में फूल फूलों में घास या घासों में फूलमैं तुलसी तेरे आँगन की मैं तुलसी तेरे आँगन कीभिण्डी का सत्यानाशभिण्डी का सत्यानाश 

गाँव से लौटकर कितना काम बढ़ गया है मेरे जिम्में- घर की सफाई, खेती की निराई और इससे भी बड़ा मेरा ब्लॉग जो लम्बा अन्तराल ले चुका है। कैसे होगा ये सब? इसी में हफ़्तों से मेरे कई सीरियल भी छूट गये हैं। बेटी के ग्रीष्मावकाश का लम्बा होमवर्क भी पूरा कराना है। :(

ये कह रहे हैं, “बहुत कुछ गिना दिया जी… अब रहने भी दो…!”

“अच्छा रहने देती हूँ… ”

अरे वाह! बातों-बातों में मेरा एक काम तो पूरा ही हो गया। नहीं समझे…? अरे वही, ब्लॉग पोस्ट लिखने का…। ये दबाया मैने पब्लिश बटन…॥smile_regular

(रचना त्रिपाठी)

12 comments:

  1. आम जीवन की साधारण घटना की असाधारण प्रस्तुति। चलिए इसी बहाने एक काम तो निपट गया।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. व्यस्तताओं के बीच ब्लॉग लेखन ,स्वागत है .

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  3. जीवन की इन घटनाओं कोपकड कर शब्द देने वालों का ब्लाग लेखन हमेशा सक्रिय रहता है. तभी तो देखिये ना..आपने बाकी काम निपटाने के पहले ही ब्लाग पोस्ट तैयार कर ली और उन्ही उलझनों से तैयार की. यह बडी बात है.

    ईश्वर आपकी रचना धर्मिता बनाए रखें. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. हे भगवान इतने कम दिनों में ही इतना निष्ठुर परिवर्तन !

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  5. संजय कुमार मिश्र
    यह इत्तेफाक ही है कि मैं मुंडन की खबर पढना कहीं और चाहता था और पढ लिया आपके ब्लाॅग पर। इस खेती को भी जीवंतता से लेने और हरियाली से जोड देने का तारतम्य अच्छा लगा। मंुडन आपके बेटे का हुआ और याद आ गया मुझे अपने बेटे सक्षम का मुंडन।

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  6. अच्छा लिखा है आपने । भाव और विचारों की प्रभावशाली अभिव्यिक्ति रचना को सशक्त बनाती है ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल हो जाने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  7. ओह ! अभी तो बरसात बरसात का आना भी बाकी है?

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  8. कोई न पहचानी सी अनूठी वनस्पति दिखे तो फॊटॊ भेजेंगी?

    बेटे का 'टूणन' अभी नहीं हुआ क्या?

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  9. 'जिउतिया' के दिन आप ने कभी 'बरियार' पौधा पूजा है ?
    'ए अरियार ए बरियार जा के राजा रामचन्द्र से कहि दीह सत्यार्थ के माई जिउतिया भूखल बाली'।
    उसी बरियार का फोटो आज मैंने अपने प्रोफाइल में लगाया है। Detail यहाँ है : http://ayurvedicmedicinalplants.com/plants/1176.html

    मैंने देखा है कि जिन माताओं की केवल बेटियाँ ही होती हैं, वे भी जिउतिया के दिन बरियार पूजती हैं - उनकी मंगल कामना और दीर्घायु के लिए। कितनी ममता हम लोग अपने पौधों को देते रहे हैं!

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  10. padh ke achchha laga.aapke ab tak ki poston se alag thi yah post.pure blogger ki post thi.

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