भरी-भरी नैना क़जरा बही जाए
बलम बन बदरा उड़ी-उड़ी आए
मोरे पिया की बाँकी उमरिया
भई री सौतन बैरन नोकरिया
दूर विदेसवा जबरन ले जाए
बलम बन बदरा उड़ी-उड़ी आए…
उड़ती जहज़िया सुनले अरज़िया
बिरह की मारी अपनी गरजिया
कासे कहूँ मैं तू ही समझाएँ
बलम बन बदरा उड़ी-उड़ी आए…
फोनवो न लागे दुस्मन तोरी देसवा
छः मास बीती न कोई संदेसवा
अबकी जो आए संग मोहे ले जाए
बलम बन बदरा उड़ी-उड़ी आए…
(रचना)
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