Wednesday, March 4, 2015

बलात्कार की चर्चा से मनोरंजन की मानसिकता

तिहाड़ जेल में बन्द एक दोषसिद्ध बलात्कारी का साक्षात्कार आजकल चर्चा में है। भूत-प्रेत, टोना-टोटका और स्टिंग ऑपरेशन के बाद मीडिया को अब यही दिखाना बाकी रह गया था। समाज के बारे में और खास तौर पर लड़कियों के रहन-सहन और ओढ़ने पहनने के बारे में इस अमानुष का प्रवचन सुनना ही अब नारी जाति के लिए बचा रह गया था। यह अधम प्रयास वे चैनेल कर रहे हैं जिनकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी प्रतिष्ठा है। जिन विद्वानों और विदुषियों को लड़कियों के साथ बलात्कार होने का कारण उनके द्वारा छोटे वस्त्र पहनना, देर रात में अपने किसी पुरुष मित्र के साथ बाहर निकलना, फिल्में देखना आदि ही समझ में आ रहा है उन्हें यह बताना पड़ेगा कि फिर क्या हर उस नयी शादी-शुदा लड़की के साथ बलात्कार नहीं हो जाना चाहिये जो अपने पति के साथ हनीमून पर जाती है.. किसी अनजान होटल में ठहरती है... अपने नये नवेले पति के साथ देर रात तक बाहर रहती है या रात में फिल्म देखकर लौटती है..? ये लोग उदाहरण दे सकते हैं कि कहीं कहीं इस तरह के केस में भी बलात्कार होते सुना गया है। तो क्या यह मान लिया जाय कि हम अपने समाज को स्त्रियों के जीने लायक नहीं बना सकते।

जीव-जंतु, पेड़-पौधे, आकाश-पाताल, नदी-पहाड़ आदि सभी चीजों का निर्माण तो ईश्वर ने किया है और उसी ने इंसान के रूप में एक बच्चे (लड़का-लड़की) को जन्म दिया है- किसी साधू या अपराधी को नहीं। लेकिन आधुनिकता और उपभोक्तावाद के जंगल में तब्दील हो चुके हमारे समाज ने ऐसे नरपिशाचों को पैदा कर दिया है जिन्होंने इन्हें बनाने वाले को भी बदनाम करके रख दिया है। बलात्कारियों का अपना कोई नाम पता नहीं होता या उनके चेहरे पर नहीं लिखा होता की फला व्यक्ति बलात्कारी है जिसे देखते ही हर लड़की सावधान हो जाये और अपना काम-धाम छोड़कर किसी सुरक्षित बन्द कमरे में खुद को कैद कर ले अथवा कोई चादर ओढ़कर या बुरका पहनकर चोरी-चोरी छिपते-छिपाते बाहर निकले। लेकिन, क्या बुरका पहनने वाली स्त्रियों के साथ कभी बलात्कार नहीं हुआ है.. या किसी छह महीने की बच्ची से लेकर अधेड़ महिला के साथ इस तरह का दुष्कृत्य नहीं हुआ है?
अगर मिडिया को किसी केस का पोस्टमार्टम करना ही है तो जरा इस मानसिकता का पोस्टमार्टम करके बतायें कि लड़कियों के लिए छोटे कपड़ें बनते ही क्यों है..? और अगर ऐसे कपड़ो का प्रोडक्शन हो रहा है तो उनके पहनने पर आपत्ति क्यों..? यदि छोटे कपड़े बलात्कार को आमंत्रण देते हैं तो इसका उत्पादन करने और बेचने वाली फर्मों पर आपराधिक मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए? फिर यह भेद-भाव ही क्यों कि ऐसे कपड़े किस तरह की लड़की पहने या किस तरह की न पहने..? देर रात में सिनेमा हॉल में फिल्में चलती ही क्यों हैं..अगर देर रात में फिल्में चलती भी हैं तो लड़कियों के लिये प्रतिबंधित क्यों नहीं कर दिया जाता है...। यदि नहीं तो फिल्म देखकर लौटने वाली लड़की के साथ बलात्कार होने पर सिनेमाहाल के मालिक के खिलाफ़ एफ़.आई.आर क्यों नहीं? या फिर देर रात का सिनेमा मर्द ही क्यों देखे..? देर रात फ़िल्म देखकर घर लौटने पर ऐसी विकृति मानसिकता वाला पुरुष अपने घर में ही अपनी वीबी या बेटी-बहू के साथ बलात्कार नहीं कर सकता क्या..?

एक बलात्कारी जैसे जघन्य अपराधी का साक्षात्कार क्या इतना जरूरी है जो उसकी डॉक्यूमेंट्री बनाकर पब्लिक नें प्रसारित की जाय..? क्या मिलने वाला है उससे? सिवाय उस निर्भया और उस जैसी तमाम पीड़ित स्त्रियों और उनके रिश्तेदारों के अपमान और मानसिक उत्पीड़न के। ऐसी वाहियात बातों की चर्चा का प्रयास करना भी सामाजिक अपराध को एक खास तरह की मान्यता  देता है और मानसिक रुग्णता के शिकार लोगों के मनोरंजन का साधन बनता है। सरकार को इसपर अविलंब पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।

(रचना त्रिपाठी)

4 comments:

  1. मीडिया पहले समाजसेवा के लिए समाज का दर्पण हुआ करती थी, परन्तु वह आज खुद को बेचने में और दूसरों को बिकने में मदद करने वाली एक संस्था हो गयी है। बीबीसी के इस डॉक्यूमेंट्री को पूरा देखे बिना टिप्पणी करना तो उचित नहीं है कि इसको बनाने के पीछे उनका क्या आशय था, और इस बलात्कार की डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से भारत में होने वाले बलात्कार में किस भावना की महत्ता को वो सिद्ध करना चाहते हैं। सबसे गंभीर बात यह है कि तिहाड़ जेल में इस प्रकार के कैदी के इंटरव्यू की आज्ञा कैसे दिया गया , जबकि विदेशी फिल्मकारों को जब भारत में शूटिंग करने की अनुमति दी जाती है तब उन्हें खास हिदायत दी जाती है कि शूटिंग में वे इस बात का ध्यान दें कि भारत की इमेज इस फिल्म के माध्यम से गलत ढंग से प्रस्तुत न हो। सबसे बड़ी बात यह कि जिस बलात्कारी का इंटरव्यू लिया गया था, उसका विचार बलात्कार के मामले में पूरे भारत के विचार का प्रतनिधित्व नहीं करता है।

    पश्चिमी मीडिया शुरू से ही भारत के नकारात्मक पक्ष को बढ़ा चढ़ा कर दुनिआ में प्रस्तुत कराती रही है। जहाँ तक बलात्कार का प्रश्न है U.S., स्वीडन , फ्रांस , कनाडा , UK और जर्मनी , दक्षिण अफ्रीका १० शीर्षस्थ देशों में है जहाँ बलात्कार सर्वाधिक है। अतः बीबीसी को दूसरे के ऊपर कीचड उछलने के पहले अपने घर झांक कर देखना चाहिए। सरकार को ब्रिटिश सरकार तथा बीबीसी के साथ यह मामला दृढ़ता से उठाना चाहिए और भारत में जिन अधिकारिओं ने इसकी अनुमति दी है, इसकी जांच कर उन पर उचित कार्यवाही करनी चाहिए।

    ReplyDelete
  2. विदेशी लोग , विशेषत: बृटेन वासी , भारत और भारतीय लोगों की गन्दी छवि दिखाने में अपना पराक्रम दिखाते हैं । उन्हें यहाँ की ग़रीबी , अपराध ही दिखते हैं । जिस महिला ने यह फ़िल्म बनाई उस ने अपने बलात्कारी पर फ़िल्म क्यों नहीं बनाई ? उसे भारतीय लड़की ही मिली अपनी घृणित मानसिकता दिखाने के लिए ।

    ReplyDelete
  3. फ़िल्म देखने के बाद फ़िर इस पर पोस्ट लिखियेगा।

    ReplyDelete
  4. बहुत सही मुद्दे उठाये हैं इस पोस्ट में ...

    ReplyDelete

आपकी शालीन और रचनात्मक प्रतिक्रिया हमारे लिए पथप्रदर्शक का काम करेगी। अग्रिम धन्यवाद।