Friday, August 8, 2014

जादू है जादू …

किसी भी कार्य को देखने का अपना-अपना नजरिया होता है। मुलायम-पुत्र-अखिलेश सरकार के बारे में रोज छप रही खबरों को देखते हुए आज अचानक मैने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया। थोड़ी उदारता से देखें तो ‘थोड़ी सी’ कमी के साथ बहुत सी खूबियां भी नजर आयेंगी। बस एक पारखी नजर की जरूरत है। कुछ उसी तरह की पारखी नजर का इस्तेमाल करते हुए मैंने  अपने खोजी दिमाग पर थोड़ा जोर डाला तो मुझे अपने यूपी के लोकशाह और नौकरशाह बहुत सी ऐसी खूबियों से भरे नजर आये जिन्हें अबतक मै देख नहीं पा रही थी। सरकार चलाने वाले ये दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आप शायद यूं भी कहेंगे कि एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। एक योजना बनाता है तो दूसरा उसका क्रियान्यवन करता है। दोनों में ताल-मेल ऐसा है कि जो चाहें कर सकते हैं। अगर चाह लें तो किसी भी योजना को अंजाम तक पहुंचाना इनके बायें हाथ का खेल है। अगर न चाहें तो एक तिनका भी नहीं हिल सकता। इनके इस हुनर की जितनी प्रशंसा की जाय कम है।

सरकारी महकमें में किसी नियुक्ति का विज्ञापन निकलने से पहले ही अगर रिजल्ट तैयार हो जाय; कोई दुर्घटना होने से पहले या चोरी, डैकैती, लूट-मार, हत्या की घटना घटित होने से पहले उस अपराधी की ‘बेल’ हो जाय; किसी ‘शव’ के अस्पताल पहुँचने से पहले ही अगर पोस्टमार्टम-रिपोर्ट तैयार मिले; तो हम इसे क्या कहेंगे...? हाईटेक्‍नालॉजी का कमाल या वैज्ञानिक चमत्कार…? सरकारी महकमा हो, पुलिस तंत्र या मेडिको-लीगल प्रोफेशन सबकी कार्य करने की शैली से इस बात का पता चलता है कि ये सभी विभाग इस युग से कहीं बहुत ज्यादा आगे चल रहे हैं। मतलब सबकुछ ‘सुपर हाईटेक’ हो गया है। अब आप इसे “थेंथरोलॉजी” कहना चाहें तो आप की बला से। जिस लैपटॉप ने अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापनों में स्थान पाया, चुनाव जिताया और घर-घर पहुँचकर ढिबरी की रोशनी में रातें गुजारी, भाई-बहनों के बीच रार मचायी, जिसने लम्बे समय तक सबकी जुबान पर राज किया उसी को इस सरकार ने जिस कुशलता से रद्दी के भाव कर दिया उसे क्या कहेंगे? मैं तो इसे ‘थेंथरई’ नहीं कहने वाली…!

‘सुपर हाईटेक्‍नालॉजी’ के मामले में आजकल हमारा यूपी शिखर पर चल रहा है। यह कला किसी और प्रदेश या विदेशों से हाईजैक नहीं की गई है बल्कि यह तो यहीं ईजाद की गई है। कोई यह मत कह दे कि बिहार में पहले से है। हमारे प्रदेश में पेट और किडनी का ऑपरेशन किसी मेडिकल कॉलेज में नहीं बल्कि मदरसे में ही हो जाता है। उसमें सर्विस इतनी अच्छी है कि भी महिला के घर वालों को कोई देखभाल भी नहीं करनी पड़ती। उन्हें तो बहुत बाद में पता  चलता है जब महिला खुद घर लौटकर बताती है कि उसका क्या कुछ बदल दिया गया है। इसपर जिसे संदेह हो वह किसी कम्पनी से सर्वे करा कर देख ले। पक्का अब्बल नम्बर पर हमारा यूपी और हमारे यूपी के जाँबाज पुलिसकर्मी और नौकरशाह ही होंगे; और इनके सिर पर ताज पहनाने वाले हमारे द्वारा चु्ने गये लोकप्रिय नेता जिनके हाथ में सत्ता की चाभी है।

हमारे प्रदेश में ‘सत्ता की चाभी’ बिल्कुल उस जादू की छड़ी  की तरह है जिसे घुमाने मात्र से ही असंभव कार्य भी संभव हो जाय। सात ताले में बंद किसी भी तिजोरी का माल बाहर आ सकता है और बाहर का माल सात ताले के भीतर जा सकता है। आपके पास सत्ता की चाभी हो तो आपको अलादीन के चिराग की भी जरूरत नहीं। कुछ भी कर गुजरने के लिए यही काफी है। इस चाभी से यहां कि इस अद्‍भुत तकनीकी को बढ़ावा देने में लेशमात्र भी देर नहीं लगती। मिनटों का कार्य सेकण्डों में पूरा हो जाता है। है ना कुछ विशेष !

(रचना त्रिपाठी)

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