Friday, December 27, 2013

बड़े बोल की पोल

देश में सियासत का जुनून सभी सियासी दलों में सिर चढ़ कर बोल रहा है। बिल्कुल वालीवुड की फिल्मों में उस नायक की तरह जो नायिका को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए, उसके सामने अपनी बहादूरी के कारनामें दिखाने के लिए भांति-भांति प्रकार के तरीकों का प्रदर्शन करता हैं। इन तरीकों में सबसे नायाब तरीका यह होता है कि नायक नायिका के सामने पहले तो खुद गुंडे भेजता है और अपना प्रभाव जमाने के लिए अचानक सुपर मैन की तरह प्रकट होता है, फिर नायिका को उन गुंडों से बचाने का ढोंग करता है। नायिका उसे रक्षक मानकर अपना दिल दे बैठती है। सियासी दलों के बीच भी वोट पाने के लिए कुछ इसी प्रकार का नाटकीय अभिनय चल रहा है।

एक समय था जब सियासत होती थी इस देश के लिए। इस देश से गरीबी, भुखमरी, बीमारी दूर करने के लिए; राष्ट्र के लिए हर नागरिक में प्रेम भावना बनाए रखने के लिए; लेकिन अब सियासत होती है भ्रष्टाचार करके पांच सालों तक भ्रष्टाचार मिटाने की ‘बात करने’ के लिए। ठीक उसी फिल्मी शो की तरह जो सिर्फ तीन घंटे में पूरी हो जाते है; और फिल्म मेकर मालामाल हो जाता है।

यूपी में भी सियासत की सरगर्मी बढ़ कर बोल रही है। तरह-तरह के तोहफों से जनता को रिझाने की कोशिश की जा रही है। सपा मुखिया अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं को नसीहत देने में जुट गये हैं। २०१४ के चुनाव को ध्यान में रखकर गुंडई न करने की बात कुछ इस तरह समझाते हैं। आइए उनकी बातों का अर्थ समझते है-

“अगर मंत्री के परिवार का लड़का गुंडई करेगा तो हमारी छवि खराब होगी। अगर खबर मिली की फला जगह गुंडई हुई तो मै पार्टी से निकाल दुंगा।” यानि चुनाव जीत जाने के बाद कुछ भी करें इन्हें आपत्ति नहीं होगी।

“मंत्रियों और कार्यकर्ताओं की छवि बेदाग रही तो पार्टी लंबे समय तक सत्ता में बनी रहेगी।” यानी लंबे समय तक लूट, हत्या, डकैती, छिनैती, दंगा, फसाद करते रहेंगे।

“यूपी में मंत्री आगे से इस तरह की घटनाओं को न दुहराएं। मंत्री अपने समर्थकों को संभालें।” यानि चुनाव होने तक उसी वालीवुड हीरो की तरह जनता को रिझाते रहो एक बार सत्ता अपनी मुट्ठी में आ जाय तो फिर खलनायक की तरह अपना असली चेहरा जनता को दिखाएंगे।

“मंत्रियों ने अगर खुद को नहीं सुधारा तो लाल बत्ती छिन सकती है।” ‘आप पार्टी’ को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका भी साइड इफेक्ट अच्छा ही होगा।

(रचना त्रिपाठी)

6 comments:

  1. आज की राजनीति का यही यथार्थ है। अच्छे से बयान किया।

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  2. अब और कोई रास्ता नहीं -बदलो या रास्ता नापो

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  3. यही राजनीति....चेहरे पे चेहरा......

    अनु

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  4. वही तो !
    http://vanigyan.blogspot.in/2013/12/blog-post_12.html

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