Thursday, May 14, 2009

मुकदमेंबाज की दवा

हमारे गाँव के उत्तर-पश्चिम कोने पर एक ब्राह्मण परिवार रहता है। जो वर्षों पहले कहीं बाहर से आये थे और इन्हें गाँव के बड़कवा बाबा के परिवार ने थोड़ी जमीन दे दी थी तबसे वहीं ये लोग घर बनाकर रहने लगे थे। इस परिवार में माँ-बाप के अलावा, दो बेटे और एक बेटी थी। बेटे बड़े हुए तो बड़े बेटे की शादी हो गई। वह पढ़ाई पूरी करने के बाद घर की खेती-बाड़ी कराने लगा। दूसरा बेटा वकालत की पढ़ाई करके वकील बन गया। लोकल कचहरी में चौकी लगा कर बैठने लगा।

उमेस उपधिआ वकील क्या बन गये गाँव में ही बवाल काटने लगे। कोई ऐसा बचा नहीं जिसके ऊपर उन्होंने मुकदमें का दाँव लगाने का प्रयास न किया हो। अब गाँव में लोगो के चेहरे पर आए दिन उदासी छायी रहती। हर एक दिन हो-हो हल्ला मचता कि आज किसी की बकरी इनके दरवाजे पर बंधी है तो किसी की भैंस। लोग गुहार लगाने बाबा के घर आते और गिड़गिड़ाना शुरु करते-

“…बाबा हमार भँइसिया ढांठर लेके जात बाटें”

“…क्यों और कौन?”

...बाबा, मोहन उपधिया; …हमार भँइसिया उनके दुअरिया पर जवन बेलवा के पेड़वा बा, ओही में से पत्ता खात रहे त मोहन खिसिया गईलें। …अउरी रोज-रोज धमकी देत बाटें कि उमेसवा वकील बन गईल बा। अब तहनी के बतावऽता… आपन चउआ-चापर, आ आपन लइका-संभार के राखऽजा। ...मालिक, आफ़त बसा देहनीं गांव में …जीयल काल कऽ देले बाने सों।…”

अब भला बाबा क्या कर पाते, शिकायत एक वकील के खिलाफ़ जो की जा रही थी। बड़े-बड़े गँवई विवाद की पंचायत चुटकी मे निपटा देने वाले बाबा यहाँ बेबस हो जाते। बाबा को क्या पता कि ये गाज उनके घर भी गिरने वाली है।

गाँव के वकील साहब अब रोज सबेरे-सबेरे अपने दरवाजे पर खड़े होकर किसी न किसी को मुकदमे की धमकी देते रहते। धीरे-धीरे बच्चों के झगड़े भी सामने आने लगे। गाँव वालों ने अपने-अपने बच्चों को हिदायत दे रखी थी कि वकील साहब के घर के बच्चों के साथ नही खेलना है। उनके साथ खेलने का मतलब होता झगड़ा और फिर मुकदमें को दावत।

वकील साहब की शादी अभी नही हुई थी । वे अपने बड़े भाई के बच्चों के लिए तो ‘सुपरमैन’ बन गये थे। बच्चे भी उन्हें चाचा के बजाय ‘छोटका पापा’ कह कर बुलाते थे। जो काम बड़का-पापा नही कर पाते, वो सारे काम छोटका-पापा पूरा करते। इनके घर के बच्चे किसी से भी बेहिचक लड़ाई कर सकते थे। इनको तो कोर्ट ने जैसे इजाजत दे रखी थी। खेल-खेल मे खुद तो बच्चों के साथ मार-पीट करते ही, अगर भूल कर भी किसी बच्चे ने इनके ऊपर हाथ उठा दिया, तब तो उसकी शामत आ जाती।…

कुछ ही देर में सारा गाँव वकील साहब के दरवाजे पर तमाशा देखने के लिए मौजूद रहता। उन बच्चों की माता जी और बड़का-पापा जोर-जोर से दहाड़ते,

“…तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बच्चों को छूने की, …आने दो वकील साहब को, तुम लोगो का दिमाग ठिकाने आ जायेगा।”

जो-जो बच्चे उस खेल मे शामिल होते उनके घर वाले बड़का-पापा की घंटो मनौनी करते। …शाम होते ही बच्चे छोटका-पापा का बेसब्री से इंतजार करते। आज के नये शिकार की सूचना देने के लिए बेचैन रहते। …स्कूटर की आवाज सुनते ही घर वालों के चेहरे पर ऐसी खुशी झलकती, जैसे मानों वकील साहब के बरदेखउवा आये हों, और उन्हें कोई उपहार देकर गये हों। उनमें छोटका-पापा को झगड़े की बात सबसे पहले बताने की होड़ होती।

वकील साहब की मुकदमेबाजी की चपेट मे धीरे-धीरे ‘बाबा का घर भी आने लगा। छोटी-छोटी बात पर उनके घर के बच्चों को भी हाथ पकड़ कर उनके घर ले जाकर शिकायत करते। ये बच्चे भी कभी-कभार अपने ही घर वालों से मार खा जाते। …यह कार्यक्रम लम्बे समय तक चलता रहा। वकील साहब का आतंक दिन पर दिन बढ़ता रहा। धीरे-धीरे बाबा के नाती-पोते भी सयाने हो गये।

एक दिन बाबा के घर कुछ मेहमान आये थे। वकील साहब की भतीजियों का बाबा के घर आना-जाना लगा रहता था, बाबा के घर आयी हुई कुछ लड़कियों और वकील साहब की भतीजियों में कहा-सुनी हो गई, यह बात वकील साहब को रास नही आयी। सबेरे-सबेरे चले आये शिकायत लेकर। यह सारी बातें, बाबा का छोटा वाला नाती जो बचपन से यह सब देखते हुए बड़ा हुआ था उसको यह बात नागवार लगी। वह अचानक उठा और सांड़ की तरह वकील साहब की ओर झपट पड़ा। उसने वकील साहब का एक हाथ पकड़कर पीछे की ओर ऐंठ दिया और दहाड़ उठा,

“ …मुकदमा करना है तुम्हें, …चल, …मेरे उपर मुकदमा कर, …वर्षों से देख रहा हूँ तुझे,” वकील साहब अचानक हुए इस हमले के लिए तैयार न थे। सिट्टी-पिट्टी गुम थी। रक्षात्मक मुद्रा अपनाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा था।

बाबा के घर के बड़े लोगों ने किसी तरह वकील साहब को छुड़ाकर वहां से भगाया। तबसे कोई नया मुकदमा नहीं हुआ। गाँव वाले अब राहत में हैं, …और बाबा के नाती को लाख-लाख दुआएं देते हैं। अब वकील साहब का गाँव में आना और जाना पता ही नही चलता। …लगता है उन्होंने स्कूटर बेच दिया।

१.बड़कवा- गाँव का सर्वाधिक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली परिवार

२.उमेस उपधिआ- उमेश उपाध्याय

३. चउआ-चापर- पालतू जानवर, गाय-भैंस-बैल आदि चौपाये

४.बरदेखउआ- लड़के से शादी के रिश्ते के लिए उसे (वर को) देखने आने वाले

(रचना त्रिपाठी)

15 comments:

  1. हमारे समाज में सदियों से पैठी सामंतवादी मानसिकता को दर्शाती है आपकी यह रचना। हमारे गांवों के पिछड़ने के पीछे इस मानसिकता की भी बहुत बड़ी भूमिका है। पता नहीं गांव के पढ़े-लिखे लोग भी इससे छुटकारा क्यों पाना नहीं चाहते। आपने कथा के अंत में जो संदेश छोड़े हैं, वह मुझे कुछ रास नहीं आया। मेरे विचार से अगर वकील साहेब के छद्म आतंक का कोई तार्किक अंत होता, तो अच्छा होता। लेकिन आपकी भाषा-शैली मन को भा गयी। शुभकामना।

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  2. अच्छी कथा है

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  3. गांव में थे तो मुकदमे बाजों की गाथा सुना करते थे। कई धाकड़ मुकदमेबाज तो अपनी खेत बारी बेच कर भी इस क्रियेटिव काम में लगे रहते थे। सारे गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज करने लायक विभूति थे!

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  4. आंचलिक शब्दों के इस्तेमाल ने रचना के सौंदर्य को बाधा दिया है. अच्छा किया आपने जो कुछ शब्दों के अर्थ नीचे दे दिए,मेरे जैसे परिवेश-विशिष्ट से अनजान लोगों को सहायता मिलेगी.

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  5. कभी हल्दी की गाँठ मिलने पर चूहा पसारी बन बैठता है। अच्छा हुआ वकील साहब को जल्दी ही नसीहत मिल गई। या तो अच्छे वकील हो गए होंगे या वकालत ही छोड़ दी होगी।

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  6. गावों के वर्तमान स्थिति का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है आपने....
    कथा में भोजपुरी का प्रयोग बड़ा ही रुचिकर लगा...

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  7. बड़ी जल्दी सुधिया गए वकील साहब :)

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  8. बढियां रहा हश्र वकील बाबू का सारी वकीलाई हेरा गयी ! मजेदार कहानी !
    सीख -आदमी को अपनी औकात नहीं भूलनी चाहिए !

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  9. आपके ब्लाग पर आना अच्छा लगा। पहली बार आना हुआ। पर आपको पढते हुए बार बार आने का मन है।

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  10. सुन्दर! मुकदमें बाज की मुफ़ीद दवा।

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  11. kya bat ha,saral hindi ke sath bhojpuri ka blend mazaa aa gaya.umeed ha aage bhi aisi sidhi sadhi magar mazedar post padhne ko milengi

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  12. achhi bat hai ki gaon aaj shant hai,shayad wakeel sahab ko apni galti ka aabhas hua ho?yadi prem, sanvad aur aapsi sojhboojh se samasya ka samadhan ho jata to BABA KE NATI ko apni maryada nahin todni padti.

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  13. अच्छा कथा चित्रण

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