मेरा भी अजीब दिमाग है छोटी-छोटी बातों को पकाने के लिए बैठ जाती हूं। कई दिनों से इस उधेड़-बुन में लगी हूं कि क्या पति-पत्नी एक साथ रह कर स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को समाज में व्यक्त नही कर सकते? क्या उनके विचार अलग-अलग होने का मतलब उनके आपस में अच्छे सम्बन्ध का नही होना बताता है? जरूरत के हिसाब से किसको कहाँ होना चाहिए, किसे कौन सी जिम्मेदारी निभानी है, इसका निर्णय मिल बैठकर कर लिया जाता है और पति-पत्नी में कोई विवाद नहीं पैदा होता, तो क्या यह खराब बात मानी जाएगी? दूसरों को यह तय करने की जरूरत ही क्यों पड़ती है कि घर की महिला और पुरुष में कौन अधिक स्वतंत्र है। क्या नारी की स्वतंत्रता तभी मानी जायेगी जब वह बात-बात पर पति का विरोध करती रहे?
मै पूछती हूँ कि पूरी तरह स्वतंत्र रहने का इतना ही शौक है तो नर-नारी वैवाहिक सूत्र में बंधते ही क्यों हैं?
शादी करना किसी की भी मजबूरी नही होती। न ही शादी कर लेने से किसी कि स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न होती है। शादी का मतलब ही यही होता है कि इस समाज को एक स्वस्थ माहौल देना। एक सामाजिक अनुशासन और सुव्यवस्था के लिए यह बहुत जरूरी है। मुझे तो लगता है कि शादी के बाद हमारी स्वतंत्रता बढ़ जाती है। व्यक्ति मानसिक रूप से और भी मजबूत हो जाता है। एक नारी को प्रकृति ने जो जिम्मेदारियाँ दी हैं उनका निर्वाह शादी के बगैर कैसे हो सकता है? शादी और परिवार के अनुभव से उसके निर्णय लेने की क्षमता और बढ़ जाती है। उसको गलत और सही का भान अच्छी तरह हो जाता है।
इलाहाबाद में हुए ब्लॉगर सम्मेल्लन में नामवर सिंह जी का यह वक्तव्य मुझे बहुत अच्छा लगा था कि ब्लॉगरी में हम कुछ भी लिखने पढ़ने को स्वतंत्र है लेकिन इसके साथ एक जिम्मेद्दारी भी है कि हम क्या लिख रहे हैं। हमें स्वतंत्र होना चाहिए मगर स्वछन्द नही होना चाहिए कि जो मन में आया लिख दिया। ब्लॉगरी भी एक जिम्मेद्दारी है। इसी प्रकार हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से किसी भी क्षेत्र में भाग नहीं सकते।
क्या आप जानते है कि हर एक व्यक्ति को चाहे नर हो या नारी ईश्वर ने कितनी बड़ी जिम्मेद्दारी सौपी है? प्रत्येक नर-नारी का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस देश और समाज को एक सच्चा इंसान दे। अगर हम यह प्रण कर ले कि हमें स्वयं के रूप में और अपने बच्चों के रूप में इस समाज को एक अच्छा और सच्चा नागरिक प्रदान करना है तो इससे बड़ी जिम्मेद्दारी और क्या होगी?
इसलिए मै कहूंगी कि एक स्त्री जो घर के अंदर रहती है जिसे हम गृहिणी कहते है वह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही है। उसके जिम्मे समाज ही नही बल्कि पूरे देश की नींव ही टिकी है अगर वही मजबूत नही होगी तो देश का क्या होगा? घर के कुशल संचालन और बच्चों की उचित परवरिश का काम समाज और राष्ट्र के निर्माण की पहली शर्त है।
इसलिए आप सबसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप एक स्त्री के कार्यों के महत्व को समझे और उसका सम्मान करें। जिस दिन एक गृहिणी के कार्यों को महत्व मिलने लगेगा हमें लगता है कि उसी दिन नारीवादी आन्दोलन समाप्त हो जायेगा।
(रचना त्रिपाठी)