आज रात की भयंकर आँधी ने मेरे घर की चार दिवारी को ढहा दिया। तूफ़ान ने किचेन गार्डेन को क्षत-विक्षत कर दिया। आधी रात को सोते वक्त दिवाल गिरने की आवाज सुनकर ही मन चिन्ताग्रस्त हो गया। मेरी सब्जी कैसे बचेगी..? …सवेरा होने का इन्तजार करते रात गुजरी।
….श्रीमानजी हमसे पहले ही बिस्तर से उठ गये थे। ….मैं भी उठने के बाद तुरन्त किचेन गार्डेन में पहुँची। देखा तो ये लगातार फ़ोन पर फ़ोन किये जा रहे हैं। ….इनके चेहरे से दीवार गिरने का दु:ख और मेरे श्रम से उगायी गयी साग-सब्जी के नुकसान होने की चिन्ता साफ़-साफ़ जाहिर हो रही थी।
लेकिन मुझे देखते ही वहाँ से मुस्कराते हुए अन्दर चले आये…। रोज की तरह चेहरे पर वेपरवाही का स्वांग रचते हुए मिठाई का डब्बा खोलकर टपा-टप एक वर्फ़ी और एक-दो बेसन के लड्डू मुँह में भर लिए।
मैंने पूछा, “चार दिवारी गिर जाने की इतनी खुशी हुई कि आज मंगलवार व्रत भी तोड़ दिया?
गलती की याद आयी तो मुंह बाये खड़े हो गये। …चलो कोई बात नही इतना तो चलता रहता है। बड़े हनुमान जी के मन्दिर का प्रसाद ही तो था।
…लेकिन मुझे देर हो रही है मैं खेलने जा रहा हूँ।
….अरे चाय तो पीते जाईए
…नही जी आज बहुत मिठाई खा लिया हूँ। चलता हूँ।
….डाक्टर ने कहा था क्या, सुबह-सुबह मिठाई खाने को…?
शायद इन्हें इस बात की चिन्ता सताये जा रही थी कि कहीं मैं इन्हें आज खेत में डन्डा लेकर खड़ा न कर दूं। पिछले तीन दिन से एक गाय हमारा गेट खोलकर भीतर आ जा रही थी और बैगन, नेनुआ और भिण्डी का काफी नुकसान कर चुकी थी। कुछ चरकर तो कुछ रौंदकर। गेट की सॉकल खराब हो गयी थी। इसे ठीक कराने की योजना बनायी जा रही थी तभी रात की आँधी ने और चिन्तित कर दिया।
ढह गयी दीवार | चर गयी गाय |
बच गयी भिण्डी | दब गये पौधे |
इनके मन की चिंता साफ़- साफ़ नजर आ रही थी। शायद इससे पीछा छुड़ाने के लिए इन्होनें जल्दी-जल्दी शॉर्ट्स-टीशर्ट चढ़ाया, कन्धे पर बैडमिन्टन किट लटकाया और स्कूटर की चाभी लेकर बाहर निकल गये। ….चाय बन गयी थी ….दौड़ कर देखा तो श्रीमानजी स्कूटर पर जमी धूल पोंछकर जाने की तैयारी में थे। बिना कंघी किये और बिना जूता पहने देखकर मैं समझ गयी कि मन ठिकाने पर नहीं है।
मैने कहा, “कम से कम जूता तो पहन ही लीजिए।”
महाशय मान गये स्कूटर बंद किए और मुस्कुराते हुए अन्दर आ गये। बचे हुए काम को पूरा करते हुए चाय भी पी लिए। पी.डब्ल्यू.डी. के जे.ई. साहब का फोन नहीं उठ रहा था। एक्सियन का उठ गया उन्हें दीवार की मरम्मत कराने का अनुरोध करते हुए ये बताना नहीं भूले कि काम तत्काल जरूरी है क्योंकि देर हुई तो श्रीमती जी की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। अब बात हो जाने के बाद इन्हें थोड़ी राहत मिल गयी।
मुझे भी अच्छा लगा और मन मे बेहद खुशी भी हुई… और क्यों ना हो? मेरे श्रीमान जी मेरे बारे में इतना सोचते जो हैं…।
(रचना)
यही संस्कार हैं हमारे, बिल्कुल सही प्रस्तुतिकरण , और छोटी छोटी चीज़ों मे खुश होना अच्छी बात लगती है .
ReplyDeleteधन्यवाद,
मयूर
ढह गयी दीवार'
ReplyDeleteचर गयी गाय'
दब गये पौधे'
मगर बच गयी भिण्डी !
अंत भला तो सब भला.
छोटी-छोटी बातों में ही तो असली ख़ुशी मिलती है.
सरकारी थी दीवाल तो गिरनी ही थी
ReplyDeleteनहीं थी साकल तो गाय चरनी ही थी
बहरहाल आप सभी स्वस्थ है ! यह ठीक है !
दीवार टूटी, किचेन गार्डेन का नुकसान हुआ। यह तो दुखद है। लेकिन आपके सहज लेखन से मन एक बार फ़िर खुश हो गया। अनायास पूरी पोस्ट पढ़ ली जाये और लगे कि कुछ और लिखा होता यह अपने आप में उपलब्धि है मेरी समझ में सहज लेखन की। बधाई! बकिया सब ठीक हो जायेगा। चिन्ता न करें।
ReplyDeleteबहुत बढिया लगा आपको पढकर .. अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteहम भी रात के कोहराम के साक्षी रहे,शीशा न टूट जाये इसलिये पूरे घर की करीब एक दर्जन खिड़कियाँ बंद करने को उठे, गाड़ी जो बाहर खड़ी थी उसे अंदर किया, ताकि पानी बरसने में भीग न जाये। छत पर अकेले जाने में डर लगा तो भइया को ले गये(डर तो बहाना होता था, बड़े भाई के साथ का एहसास ही कुछ और होता है)।
ReplyDeleteथोड़ा सा आंधी तूफान आ जाता है तो कामवाली छुट्टी भी मार देती है, जब देखा कि 8 बजे तक नही आई, आंधी की भरी धूर निकालनने के लिये झाडू ले कर जुट गये। कह सकते है मेरे लिये खुशियों भरी आंधी थी परन्तु कईयो को झटका दे गई।
आप ने इसे ऐसे प्रस्तुत किया है कि लगता है मेरे घर की घटना है।आप की मेहनत से बोई गई भिण्डी बच गयी...बधाई...
ReplyDeleteaapki post padhakar divar girane ka gam hi nahi hota.itani saral aur pravah-purna post padhkar maja aa gaya.
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