Friday, July 24, 2020

कम-अक्ल औरतें भी न...

व्यर्थ जल रही 
बिजली 
और पंखों का  
स्विच 
बार-बार 
ऑफ कर देती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

घिसा हुआ साबुन
टूथ पेस्ट की
पिचकी हुई ट्यूब
डब्बे की तली से 
लिपटा घी
सब न जाने  
कैसे सोख लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

गैस चूल्हे पर
चढ़ी
दो-दो तीन-तीन
रोटियां
एक साथ
झटपट सेंक लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

आंधी-पानी की 
गड़गड़ाहट 
की आहट 
मौसम के करवट
बदलते ही 
कैसे भांप लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

छत पर टँगे 
कपड़े
धान गेंहू की 
पथार
अचार की गगरी
और साथ में 
घर के 
बड़े-बुर्जगों की
फटकार
सब एक साथ
समेट लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

देश-दुनिया की 
ख़बर से बेख़बर
सुबह की चाय 
अख़बार के साथ 
नहीं पीती
फिर भी
सबके चेहरे 
जाने कैसे पढ़ लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

गोबर-मिट्टी से
दिन-भर 
लीप-पोत कर,
यहाँ-वहाँ पड़े
आरामतलबी के 
शिकार 
घरेलू वस्तुओं को
करीने से
सजा के
कच्चे मकानों में
पक्का घर
जाने कैसे बना लेती हैं!

सचमुच -
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

(रचना त्रिपाठी)