Thursday, July 30, 2015

वो लाल स्कार्फ

मेरा वो लाल स्कार्फ! कहाँ होगा...? जो मुझे आज  बिल्कुल भी याद नहीं है। कैसा था वो... कहाँ से लाऊँ उसे...? दिमाग के कपबोर्ड को खंगालते हुए अपने स्मृति-पटल पर उसकी कोई छवि नहीं बना पा रही हूँ। वही तो मेरी पहचान थी। काश मुझे वो मिल जाता तो मैं फिर से उसे ही पहनती। हो सकता है उसको पहनने के बाद मैं आज भी उतनी ही प्यारी लगने लगूँ जितनी कि कॉलेज के दिनों में अपने सीनियर्स को लगती थी।

मुझे कैसे पता होता कि मैं उसको पहनने के बाद कैसी लगती थी? आज से पहले किसी ने मेरे मुँह पर ये बात तो कही नहीं कि मैं लाल स्कार्फ में बहुत प्यारी लगती थी।

मेरी एक सीनियर जो इंटरमीडिएट में मेरे से एक क्लास आगे थी, आज उनका फोन आया। उन्होंने अपना परिचय देते हुये कहा- रचना! मैं रेनू... रेनू पांडे...तुम्हें कुछ याद आया...हम दोनों उदित (कॉलेज) में पढ़ते थे। मैं ख़ुशी से चौक कर बोल पड़ी- ओओओओ... रेनू दीईईईईई... कैसी हैं आप... कहाँ हैं आजकल... मेरी याद कैसे याद आई आपको...? मुझे तो सिर्फ आपकी ब्लू-सूट में दो चोटी वाली, चेहरे की एक हल्की परछाई सी याद है। चूँकि आप पढ़ने में बहुत अच्छी थीं, तो नाम कभी नहीं भूला। क्या आपको मेरा चेहरा याद है?

उनकी वो मधुर आवाज अभी तक मेरे कानों में गूँज रही है-
" अरे! मुझे तो अभी तक नहीं भुला वो  'लाल स्कार्फ' वाला गुलाबी चेहरा जिसमें तुम बहुत प्यारी लगती थी।"

ओहोहो... मेरा मन तो ऐसे झूमा कि बस पूछिये मत! सुना तो मैंने बिल्कुल स्पष्ट था। पर मुझे अपने ही कानों पर भरोसा न हुआ। और मैं उनसे गोल-मोल बातें घुमाते हुये फिर से पूछ बैठी- "क्या कहा... लाल स्कार्फ! कहीं मैं उसमें बेवकूफ तो नहीं लगती थी?"

"नहीं यार! तुम हम लोगों को बहुत प्यारी लगती थी। पहले तुमसे कभी ये बात कही नहीं। पर जब तुम लाल स्कार्फ लगाकर आती थी, तो तुम्हें बार-बार देखने का मन होता था। सच में।"

जी, तो मुझे कहना ये था कि अब वे बीते हुये दिन तो वापस आ नहीं सकते। पर रेनू दी! काश आपने मुझे ये बात पहले बता दी होती, तो मैं अपना 'वो' लाल स्कार्फ अपने साथ लेकर आयी होती! 

(रचना त्रिपाठी)