डार्विन के अनुसार जैविक विकास के विभिन्न चरणों में जीवन संघर्ष के फलस्वरुप सर्वाधिक सफ़ल जीवन व्यतीत करने वाले सदस्य योग्यतम होते हैं। इनकी सन्तान भी स्वस्थ होती हैं जिनसे इनका वंश चलता रहता है।संघर्ष में जो अधिक सक्षम होते हैं वही विजयी होकर योग्यतम सिद्ध होते हैं। इसे हम ‘जंगल का कानून’ या ‘मत्स्य न्याय’ के नाम से जानते हैं। यहाँ विवेक के बजाय पाशविक शक्ति का महत्व अधिक होता है।
जंगल से बाहर निकल कर हम एक कथित ‘सभ्य समाज’ का निर्माण कर चुके हैं और वैज्ञानिक युग में प्रवेश कर चुके हैं। हमें ईश्वर ने दो हाथ-दो पैर और भला बुरा सोचने के लिये एक स्वस्थ मस्तिष्क दे रखा है। मैं समझती थी कि डार्विन का सिद्धान्त तो सिर्फ़ जानवरों पर लागू होता है। लेकिन देख रही हूँ कि इन्सान रुपी जानवर की बात भी अलग नहीं है जो चन्द पैसों की लालच में या अपने किसी स्वार्थ में या कभी-कभी केवल खेल-मनोरंजन में अपनों का ही कत्ल कर बैठता है।
मन सोचता है कि क्या हम एक सभ्य समाज में जी रहे हैं?
मैं कभी कभी यह सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि क्या सचमुच हमारे देश में भाईचारा है?...आखिर कौन सा उदाहरण हम अपने आने वाली पीढ़ी के सामने पेश करेंगे? आये दिन समाचार पत्रों, पत्र- पत्रिकाओं में पढ़ने और टीवी पर देखने को मिलता है कि आज एक भाई ने अपने भाई को गोली मारी।….कारण क्या है, कभी एक बीघा जमीन तो कभी रोटी।….अभी तक यह सारी बातें हम निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग में देखा-सुना करते थे। लेकिन अब तो यह सारी बाते उच्च वर्ग में भी देखने को मिलती हैं।
निम्न वर्गों में अभी भी शिक्षा की कमी, संस्कारहीनता और गरीबी-भुखमरी इसके कारण है। लेकिन… आखिर उन्हें क्या कमीं है जिनके पास करोड़ों की सम्पत्ति है। मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी हमारी पीढ़ी को क्या सन्देश देते हैं। प्रवीण महाजन ने प्रमोद महाजन को गोली मारी… आखिर क्यों? इनके पास क्या कमी थी? क्या ये उच्च वर्गीय लोग हमारे आदर्श बन सकते हैं? संजय गांधी के मरने के बाद राजीव गांधी भी अपने अनुज की पत्नी और बेटे को अपने साथ नही रख सके। क्या यह हमें भाईचारा सिखाता है…?
जो इन्सान एक परिवार नही चला सकता वह एक देश चलाने का ठेका कैसे ले सकता है?
(रचना)
aapki baat se puri tarah sahamat.manav apni maanviyata ko bhoolata ja raha hai jisse h yah samasya aa rahi hai .manav ko manav hone ki jaroorat hai.uske vaastvik artho me.jamaye rahiye.
ReplyDeleteबहुत बहुत स्वागत, जल्द ब्लागर मीट का आयोजन करना पडेगा।
ReplyDeleteडार्विन सभी पर भारी हैं -डार्विन जन्म द्विशती पर एक विचारपरक पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत बढि़या,उम्मीद है कि आगे भी इस तरह के लेख देखने को मिलेंगे ।
ReplyDeleteपता नहीं - शायद यह भी है कि मीडिया के चक्कर में हम सनसनी युक्त नकारात्मक बातें देखने-पढ़ने-मनन करने के आदी हो रहे हैं।
ReplyDeleteजैसे अवसाद को चिमटी से पकड़ बाहर करना होता है, वैसे ही अपने को इस संस्कारहीनता से इम्यून करना सीखना होगा शायद।
मानव बड़ा जटिल जीव है. उसके व्यवहारों से उसे समझना बड़ा कठिन है. किसी नियम से चल नहीं सकता. कब कौन क्या कर दे... कोई नहीं जानता !
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