Monday, February 3, 2014

आजम से आजिज..

आम आदमी को तो इसका एहसास होता ही रहता है लेकिन शायद अब जानवरों को भी यह लगने लगा है कि इस देश में सेक्युलर चोला ओढ़कर साम्प्रदायिकता को भड़काने वाले नेता अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक की राजनीति करते हुए राष्ट्र की मूलभूत नीतियों के विरुद्ध कार्य करने में जुटे हुए हैं। यूपी के कद्दावर नेता आजमखाँ, जो मुज्जफरनगर में सांप्रदायिक दंगों के बाद अपनी सेकुलर छवि सिद्ध करने में लहूलुहान हो रहे हैं उन्हें उनकी भैंस ने भी नोटिस थमा दी है। इनकी जुबान सेकुलरिज़्म की बात करते-करते महज ‘सांप्रदायिक दुकान’ बनकर रह गयी है। इसे एक ‘तबेला’ कह लें तो गलत नहीं होगा, जहां सिर्फ मिलावटी धंधे की बात होती है।

कभी किसी ने सोचा कि आखिर उनकी भैंस गयी कहां? उस भैंस की जाति क्या थी? वह मुस्लिम थी या हिन्दू? मै बताती हूँ। हम लोगों की तरह ही भैस ने भी मंत्री जी का वह महान वक्तव्य कहीं सुन लिया था  जिसमें उन्होंने अलीगढ़ के मुस्लिमों के बीच एक मशहूर दन्तकथा के माध्यम से एक खास संदेश दिया था। तीन ठगों ने कैसे एक आदमी का बकरा ठग लिया था, अलग-अलग स्थानों पर यह बताकर कि वह बकरा नहीं गधा है। उन्होंने कहा कि संघियों ने  मुस्लिमों को यह कहकर बदनाम करना शुरू किया कि वे बच्चे ज्यादा पैदा करते हैं। देश की जनसंख्या बढ़ाने में मुसलमानों का रोल ज्यादा है। इस लांछन से बचने के लिए ये बेवकूफ़ मुसलमान बच्चों की संख्या कम करने लगे। सिर्फ दो बच्चे पैदा करने की सलाह देकर अल्पसंख्यकों को बेवकूफ बनाया जा रहा है और यह वर्ग उनकी बातों में आकर बच्चे कम पैदा करने लगे हैं जिससे इस वर्ग को बहुत बड़ी हानि पहुचने वाली है। यह बात यहीं पर जाकर खत्म नहीं होती है। उन्होंने परिवार छोटा रखने की सलाह देने वालों को ‘ठग’ तक करार दिया।

वोट की राजनीति से प्रेरित इस संदेश का अर्थ अल्पसंख्यकों को समझ में आए या न आये लेकिन उनकी भैंस को यह बात समझ में आ गयी होगी कि मंत्रीजी ने अपने धन्धे को चंगा बनाये रखने के लिए भैसों के साथ भी राजनीति कर सकते हैं। दुग्ध उत्पादन में कोई कमी न आए इसके लिए वह डाक्टरों की सलाह लेकर भैसों को जल्दी-जल्दी बच्चा देने के लिए जबरिया मजबूर कर सकते हैं। एक भैंस मुर्गी तो बन नहीं सकती कि थोक के भाव से अन्डे देगी। नेता जी की इच्छा से आजिज होकर भैसों ने सोचा होगा कि अब उनके तबेले में निबाह नहीं है, जरूर वह रात में खूंटा उखाड़ भाग निकली होगी। शायद वह  मंत्रीजी के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज करा देती; लेकिन उसको क्या पता था- जिसकी लाठी उसकी भैंस; कि पुलिसवाले भी उन्हीं के इशारे पर कार्य करते हैं, आखिर मनुष्य और जानवर में यही तो फर्क है। यह तो हमने भी सोचा था कि मंत्रीजी के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए लेकिन यूपी पुलिस कि हकीकत क्या है, यह तो सब जानते हैं।  मंत्रीजी  के सलाहकार अब शायद उन्हें सूअर पालने के धन्धे के बारे में बतायें। वह भी एक बार में चार से छ: बच्चे पैदा करती है।

(रचना त्रिपाठी)

9 comments:


  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १७ साल पुराने मामले मे रेलवे देगा हर्जाना - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. खूब मजे ले लिये आपने तो!

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  3. अच्छा लिखा है.

    रूपसिंह चन्देल

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  4. भैंस के आगे बीन!

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  5. आखिर भैंस के भी कुछ मूलभूत अधिकार तय होने चाहिये.:)

    बहुत ही सटीक व्यंग, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. कहीं ऐसा तो नहीं कि बेकार हो गई भैंस गई और नई-नवेली की व्यवस्था ......(उनका नाम तो लिखा नहीं था उस पर ).

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