हाल ही में हमारे देश के कुछ संतों को यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ कि देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए हमें दस-दस बच्चे पैदा करने चाहिए। उन्हों ने इस ज्ञान को अपने प्रवचन में मिलाकर भक्तों के हवाले कर दिया। यह सुनकर पहले तो मैं हतप्रभ रह गयी कि कैसे संभव होगा इस सदुपदेश का अनुपालन करना। अब तो बहुत देर हो गयी, लेकिन यह देखकर मन को समझा लिया कि ज्यादातर लोग हमारी तरह ही मजबूर होंगे। लेकिन यह धरती वीरों से खाली भी नहीं है।
एक परिवार जिसे मैं वर्षों से देखती-सुनती आ रही हूँ, लगता है उसने हमारे देश के वर्तमान संतो की बातों पर अमल करने की ठान ली है। उस घर के मुखिया को अपने परिवार का पेट भरने को दो वक्त की रोटी के लिए हाड़- तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। घर के उस एकमात्र कमाऊ सदस्य ने एक दिन एक्सिडेंट के दौरान अपना शारीरिक स्वास्थ्य भी गवां दिया। लेकिन इस महावीर ने सात बच्चों को पैदा करने के बाद डॉक्टर की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में आठवें का भी नम्बर लगा लिया है। ऐसे में खेद है कि अब वो इन सन्तों की इच्छा के आंकड़े को पूरा करने में दो की संख्या से और पीछे रह गया है।
जो असाधारण मनुष्य अपनी आठ सन्तानें भेंट स्वरूप इस राष्ट्र को प्रदान कर चुका है अगर उसे इस बीच कुछ हो जाता है तो वह इस राष्ट्र की एकता और अखण्डता बनाये रखने के लिए दो रत्नों को और पैदा करने से चूक जाएगा। मेरी चिंता का विषय यही है। ऐसे में उन सन्तों की ही तरह इस देश की खातिर आपका भी कुछ फर्ज बनता है! उन सन्तों से आप यह निवेदन करें कि किसी भी हाल में उस इंसान को जिन्दा रखने के लिए अगर कोई जड़ी-बूटी हो तो उसे पिलाकर उसकी प्राण रक्षा करें; नहीं तो जो अभी पैदा नहीं हो सके उन दोनों रत्नों के अभाव में इस देश का क्या होगा। संतो के कहे अनुसार उनकी इस देश को बहुत जरुरत है।
जो इस देश की मिट्टी पर खड़े हो चुके हैं उन सातों औलादों की चिंता आप छोड़ ही दे। वे बड़े 'होनहार' हैं। कम उम्र में ही वे पड़ोसियों के घर में हाथ साफ करके अपनी व्यवस्था बखूबी कर लेते हैं। आंठवा भी गर्भ में पड़े-पड़े ही माँ की हाड़-मांस में बची-खुची आयरन-कैल्शियम और विटामिन्स को चूस कर जिन्दा बाहर आने के लिए इस चक्रव्यूह को पार कर ही जाएगा। ...और उस औरत का क्या? गजब की ताकत बख्शी है ईश्वर ने उसको। आठवाँ बच्चा पेट में है और पहली बेटी ससुराल जाकर माँ बन चुकी है फिर भी उसके शरीर ने जवाब नहीं दिया है। अपाहिज हो चुके पति की दुर्दशा से भी कोई शिकन नहीं है चेहरे पर। गाँव भर के लोग दीदे फाड़े देखते है उस उर्वर 'शरीर' को। गजब की है जिजीविषा। कुछ न कुछ पा ही जाती है अपने और बच्चों के पेट के वास्ते।
तो हे सन्त जन, आप इन बच्चों की चिंता ना ही करें। जिस भगवान ने इनके शरीर में मुंह दिया है वही इनके मुंह में भोजन भी दे देगा। आखिर आप लोग भी तो इस देश का दिया तरमाल उड़ा ही रहे हैं। आपकी शिक्षा-दीक्षा का प्रमाण आपका यह अद्भुत बयान दे ही रहा है। ये बच्चे भी ऐसा ही दिव्य ज्ञान अर्जित कर लेंगे। आप तो बस इन बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी में कहीं कोई व्यवधान ना खड़ा हो जाय उसका उपाय जरूर कर लें। आखिर 'पड़ोसी' के घर में हाथ साफ करने का इनका अनुभव भी तो हमारे देश के लिए बहुत कारगर साबित होना है। आपके मतानुसार यही आंकड़े ही तो देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाले हैं
(रचना त्रिपाठी)
अफ़सोस है। ऐेसे संतों को अकल मिले।।
ReplyDeleteप्रशंसनीय - प्रस्तुति ।
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