Wednesday, April 30, 2014

सोलहवें की बात ही कुछ और है …

अपना देश आजकल सोलहवीं लोकसभा चुन रहा है। चारो ओर जबरदस्त उत्साह, जोश, और उन्माद सा छाया हुआ है। कुछ वैसा ही माहौल जैसा सोलह की उम्र हमारे जीवन में लेकर आती है। ऐसा लगता है सोलहवीं लोकसभा के निर्माण में भारतीय लोकतंत्र की जवानी भी इस समय अपने उरोज पर है। वोटर्स में एक उन्माद, एक ऐसी उर्जा का प्रवाह देखने को मिल रहा है जैसे वे अपने यौवन की दहलीज पर खड़े हों। परिवर्तन तो लाजमी है! अब मानो लोकतंत्र कह रहा हो कि ‘छोटा बच्चा जान के हमको ना बहलाना रे..डुवी-डुवी डम-डम’। ऐसे में बस, इन्हें अपने प्रतिनीधि के चयन के लिए जोश में होश बनाए रखने की जरूरत है।

अब हमारे नेतागण यह जान ले कि इनकी घटिया नीति से लोकतंत्र को सिर्फ एक प्याला ‘पॉलिटिक्स’ पिलाकर और एक थाली राजनीति खिलाकर नशे में धकेलते हुए अपनी दाल गलाने की मंशा सफल नहीं होने वाली है। अब नादान नहीं रहा हमारा गणतंत्र। इसकी भी आँखे खुल गई हैं। इस लोकतंत्र को एक सच्चे ‘नायक’ की तलाश है जिसे वह पूरा करने की हर संभव कोशिश कर रहा है ताकि इसकी बागडोर ऐसे हाथों सौपी जा सके जो सही मायने में इस देश में लोकतंत्र स्थापित कर सकने का भरोसा दिलायें।

देश की आधी से अधिक जनता पानी, बिजली, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, अशिक्षा, गरीबी के संकट से जूझ रही है। ऐसे में अगर हमारे जनप्रतिनिधि ‘लकुसी’ से पानी पिलायें तो यह उनकी भूल होगी। उन्हें भ्रांति फैलाने की कोशिश कत्तई नहीं करनी चाहिए। इस समय लोकतंत्र में जो क्रान्ति की लहर चल रही है अब वह अपने उफान पर है। जिससे लोकशाही में बहुत बड़ा उठा-पटक होने वाला है।

अब भलाई इसी में है कि लोकतंत्र पर्व के इस सोलहवें चरण में हमारे जनप्रतिनीधि भी कंधे से कंधा मिलाकर चलें, और इसके उज्ज्वल चेहरे में चार-चांद लगाने की कोशिश करें। तब तो इनकी बची-खुची प्रतिष्ठा भी बनीं रहेगी और ये मैदान में मुंह दिखाने लायक रहेंगे; नहीं तो यही समय है जब वे अपना झोला-डंडा उठा लें और चलते बनें। क्योंकि अब नया नारा है- लोकतंत्र की जवानी जिन्दाबाद..!

(रचना त्रिपाठी)

2 comments:

  1. अच्छा है। सामयिक है।

    १.अब मानो लोकतंत्र कह रहा हो कि ‘छोटा बच्चा जान के हमको ना बहलाना रे..डुवी-डुवी डम-डम’।
    २.इनकी घटिया नीति से लोकतंत्र को सिर्फ एक प्याला ‘पॉलिटिक्स’ पिलाकर और एक थाली राजनीति खिलाकर नशे में धकेलते हुए अपनी दाल गलाने की मंशा सफल नहीं होने वाली है।

    इस प्रयोंगो से लग रहा है कि अब लेखन में आपको और मजा आने लगा है। सहजता से आप आसपास की बातों को लिख रहीं हैं।

    बधाई।

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  2. टा बच्चा जान के हमको ना बहलाना रे..डुवी-डुवी डम-डम’।
    कतंत्र की जवानी जिन्दाबाद.. बहुत खूब!
    बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति। .

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