आज अचानक ऐसा लगने लगा जैसे मेरी बेटी मुझसे कुछ कह रही है-
ऐ माँ तू मुझमे
खुद को देख ले..
मेरी बेवकूफियों पर
तू फिर से
नादाँ हो ले
मेरी बढ़ती उम्र के साथ
तू फिर से
जवाँ हो ले
मेरी आँखों में सजा के
तू अपने सपने
साकार कर ले
ऐ माँ...
(रचना त्रिपाठी)
माँ बेटी का यह संवाद कितना सुन्दर है ,सीधे सादे शब्दों में दिल तक जाती बात
ReplyDeleteबेटियां वह आईना है जिसमे माँ का वजूद छिपा है , उसका बचपन , युवावस्था , सपने सब !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 05/04/2014 को "कभी उफ़ नहीं की
" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1573 पर.
भावपूर्ण प्रस्तुति| बेटी माँ का ही अक्स अधिकतर होती है |
ReplyDeleteआपने पुत्री को माँ की आत्मा कहा है -बिलकुल सच है यह !
ReplyDeleteसुंदर भाव पूर्ण रचना.
ReplyDeleteभाव पूर्ण साधो ...
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