एक दिन की बात है मैं सुबह-सुबह बाथरूम में कपड़े धुलने के बाद स्नान करके बाहर निकली तो मेरे हा्थ में कपड़े से भरी बाल्टी को देखकर मेरे श्रीमानजी ने कहा- “अरे यार, तुम्हे ठंड लग जाएगी जल्दी से स्वेटर पहन लो” इतना सुनते ही मेरा हृदय प्रफुल्लित हो गया लेकिन मै उन्हें अपने इस आनंन्द का एहसास न दिलाकर थोड़ा सा इतराते हुए बोली- “अगर इतनी ही चिंता है मेरी तो कपड़े आप फैला दीजिए, मै तब-तक स्वेटर पहन लेती हूँ।” मुझे नहीं पता कि मेरी यह बात उन्हें कैसी लगी होगी..? इतना सुनते ही ये मेरे हाथ से बाल्टी लेकर बालकनी में कपड़े फैलाने लगे। मै स्वेटर पहनते हुए बालकनी में आकर खड़ी हो गई। उस दिन मै बहुत खुश थी। इस तरह की छोटी-छोटी खुशियां हमारे जीवन में बहुत सुख दे जाती हैं।
बहुत लोगों का मानना है कि अगर जीवन में पैसा है तो सब कुछ है। लेकिन हमें लगता है खुशियां खरीदी नहीं जा सकती और ना ही किसी से छीनी जा सकती है। वह इंसान जिसके पास अकूत सम्पत्ति का भंडार पड़ा हो; ऐश-आराम; धन-दौलत; बंगला; गाड़ी-घोड़ा; नौकर-चाकर; मोटरकार के साथ ड्राइवर भी हो; बीवी के साथ बैरा भी; इज्जत-प्रतिष्ठा; मान-सम्मान; बच्चों के साथ एक भरा पूरा परिवार और साथ में माँ भी हो; तो ऐसे इंसान अगर प्रसन्न होते होंगे तो कैसे दिखते होंगे? उन्हें देखकर हम कैसे समझ सकेंगे कि वे आज बहुत खुश हैं..? उनके आनंद के पल कैसे होते होंगे जिन्हें कभी किसी चीज का अभाव न हुआ हो? उनकी थकान कैसी होती होगी जिनका पाला कभी शारीरिक और मानसिक श्रम से न पड़ा हो; बैठे बिठाए सब कुछ मिल जाता हो?
हम जैसे सामान्य लोगों को रोजमर्रा की थकान भरी जिंदगी में कभी कोई मूल्यवान वस्तु मिल जाने पर जिस खुशी का एहसास हमें होता है, ऐसे खुशी के पल उनके जीवन में किस तरीके से आते होंगे..? एक तरफ जहां हमें अपने बच्चों की छोटी-छोटी खुशियों को पूरा करने के लिए सौ बार सोचना पड़ता है और उसके लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, तदुपरान्त हमें उनकी खुशियों को पूरा करके जिस चैन और सकून की अनुभूति होती है क्या ऐसा ही चैन उनके जीवन को नसीब होता है या इससे भी कहीं ज्यादा मिलता है, जिनके पास सब कुछ है? ऐसे घर के बच्चे और स्त्रियों की खुशियां किन-किन बोतों पर निर्भर करती होंगी जहां हर जरूरत की वस्तुएं पहले से मौजूद हों? स्त्रियों का अपने पति से नोंक-झोंक होती होगी भी तो किस बात पर..अगर नोंक-झोंक नहीं है तो प्यार कैसा होगा?
अक्सर स्त्रियां पति के द्वारा अपने छोटे-छोटे क्रिया-कलापों पर मिलने वाली सहानुभूति से बहुत प्रसन्न हो जाती हैं। जैसे- अगर उसका पति उसे एक बार प्यार से पूछ दे कि- तुमने अभी कुछ खाया कि नहीं.. सुबह से काम में लगी हो थोड़ा सा आराम कर लो.. किचेन में काम करते समय कितना पसीना आ जाता है तुम्हें आओ मैं इसे पोछ दूं.. मै समझ सकता हूं कि तुम पूरे परिवार के लिए कितना कुछ करती हो.. खाना लगाते समय पति से मिलने वाली छोटी-छोटी मदद जैसे टेबल पर खुद से पानी रख लेना खाने के प्लेट्स लगाना..इत्यादि। आखिर इनकी खुशियों का भी कुछ तो पैमाना होगा..
(रचना त्रिपाठी)
छोटी-छोटी खुशियां हमारे जीवन में बहुत सुख दे जाती हैं।
ReplyDeleteसही बात!
यह पोस्ट भी कुछ ऐसी ही लगी। छोटी , खुशनुमा। :)
छोटी छोटी बातों में है खुशियां बड़ी !
ReplyDeleteखुशनुमा पोस्ट !
Excellent.
ReplyDeleteया यूँ कह लें...बड़ी-बड़ी खुशियां हैं छोटी-छोटी बातों में...
ReplyDelete:-) अब सदाशयता का परिणाम तो देखिये -झट से काम पकड़ा दिया :p
ReplyDeleteइसलिए तो मैं बहुत सावधान रहता हूँ -प्यार प्रसंशा सब होठों के भीतर ही ठीक :P
छोटी छोटी बातों में है खुशियां बड़ी !
ReplyDeleteसंजय भास्कर
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