Wednesday, December 18, 2013

सावधानी हटी दुर्घटना घटी..!

उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम की प्रायः सभी बसों में ड्राइवर के सामने लिखा यह सूक्ति वाक्य बहुत प्रासंगिक है : सावधानी हटी दुर्घटना घटी। यह तो तय है कि भय न हो तो मानवमन अनुशासित नहीं हो सकता। तेज रफ्तार में गाड़ी चलाई तो दुर्घटना होने का डर रहता है, इसलिए गाड़ी की स्पीड कम करनी पड़ती है। ऐसा नहीं होता तो सबको जल्दी निकलने की होड़ मची रहती और मिनटों का काम सेकेण्डों में पूरा कर हर आदमी अपनी पीठ थपथपाता रहता। अक्सर यह देखा जाता है कि बड़ी- बड़ी ट्रकों के पीछे यह लिखा होता है कि ‘सटला ता गईला’। यह ठेठ चेतावनी हर यात्री को आगाह करती है कि गाड़ी चलाने में जल्दबाजी न करें नहीं तो आप दुर्घटना के शिकार हो सकते। जानबूझकर लाइनमैन भी नंगे हाथ से बिजली प्रवाहित नंगा तार कत्तई नही छूते। ऐसा इसलिए होता है कि उन्हे करंट लगने का डर होता है, और यही डर उन्हे सावधानी से कार्य करने की चेतना प्रदान करता है।

‘‘विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिन होत न प्रीत’’। राम जी द्वारा प्रार्थना करने व लाख मान-मनुहार के बाद भी ‘जड़ समुद्र’  ने उन्हें लंका पहुँचने का रास्ता नहीं दिया। अंततः जब उन्होंने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ायी तो त्राहि माम्‌ की पुकार करते हुए समुद्र महराज पैर पर गिर पड़े। इसलिए डर की महिमा कम करके नहीं आंकी जा सकती।

ऐसा ही एक डर कानून का है, दंड संहिता का है जो अपराध न करने की चेतना प्रदान करता है। कानूनों के प्रति बढ़ती जागरूकता से और उनमें बताये गये दंड विधान के प्रचार-प्रसार से अब माहौल ऐसा बनता जा रहा है कि कुछ महापुरुषों को भी अब डर लगने लगा है। निर्भया ने जाते-जाते एक उपहार इस समाज को दे दिया। औरत अब चुप नहीं लगाने वाली। लाज की गठरी बनकर वहशी दरिन्दों का शिकार नहीं बनने वाली। अब उसने मुंह खोलना और संघर्ष करना शुरू कर दिया है। अब कोई माननीय हों या स्टिंग की शक्ति से मदान्ध ऊँची रसूख के दलाल सबके खिलाफ आवाज उठने लगी है। अब वह बात नहीं चलेगी कि कभी इनकी जुबान फिसले तो कभी उनके हाथ-पैर।

कानून का डर इन्हें फिसलने से जरूर रोकेगा। लेकिन इनके अंदर एक मलाल तो हमेशा बना रहेगा कि अन्जाने में भी ये फिसल नहीं सकते। अब इन्हें वही याद आएगा जो ट्रक के पीछे लिखा होता है - ‘सटला त गईला’।

इनका डर इतना भारी हो गया है कि अब ये दफ्तरों में महिला स्टाफ़ नियुक्त न करने की बात करते हैं। कहाँ-कहाँ बचोगे बच्चू इस तरह मुंह छिपाते? इससे तो अच्छा है कि अपनी आदत ही सुधार लो। अपना व्यवहार ही ऐसा बना लो जो तुम्हारे आस-पास दिखने वाली लड़कियों और औरतों की गरिमा के अनुकूल हो। अपने ऊपर इतना नियंत्रण तो रखो, विश्वास तो करो कि तुम्हारी आंखों में लंपटता का वास नहीं होगा, तुम्हारी नसों में पशुओं सा संवेग नहीं पनपेगा, तुम्हारे विवेक पर ताला नहीं पड़ेगा; जब तुमारे आस-पास किसी की माँ, बहन, बेटी या दोस्त अपना काम कर रही होगी। सभ्यता की परीक्षा देने में इतनी घबराहट क्यों?

अरे..! दुर्घट्ना होने के डर से हम घर से निकलता तो नही बंद कर देते...? हां , सावधानी जरूर बरतनी चाहिए। डर से ही सही, अब तो हमें सभ्य बन ही जाना चाहिए।

(रचना त्रिपाठी)

5 comments:

  1. खतरे से आगाह करती प्रेरक - प्रस्तुति । जीवन अनमोल है , अपने-आप से प्यार करना सीखिये । आपके जीवन के साथ अनेक लोगों का जीवन जुडा हुआ है । पहले अपना सम्मान करें और अपनी देख-भाल स्वयं करें।

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  2. चकाचक है।
    दुर्घटना के बारे में हमारा मानना है कि अगर आप 100% परफ़ेक्ट ड्राइवर हैं तो आपकी सुरक्षा 50% है। बाकी तो अगले के हाथ में है।

    बाकी आचरण त ठीक होना ही जाहिये वर्ना -सटला त गईला हईऐ है। :)

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  3. सजग रहने की इकतरफा हिदायतें आजकल दोनों पक्षों को दी जाने लगी हैं। वर्षों की लड़ाई से कुछ तो सकारात्मक उपजा !सटला तो गईला। .... हा हा हा !
    अच्छा आलेख !

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  4. कोई भी क़ानून मानव जीवन के सर्वोपरि नहीं हो सकता -आज मुद्दे पर एक व्यापक सोच की जरुरत है रचना जी
    मानव जिंदगी ट्रक और टेम्प्पो नहीं है जीवंत संचेतनायें हैं !

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    1. मानव जीवन को ट्रक और टैंपू किसने कहा? यहाँ तो एक ठेठ संदेश की बात कही गयी है। अच्छा संदेश मिले तो कहीं से ग्रहण किया जा सकता है।
      जीवंत संचेतनाएँ केवल पुरुष की जिन्दगी ही नहीं है, महिलाओं की जिन्दगी भी उतनी ही जीवन्त है। इसी को समझने की बात की गयी है। उनकी गरिमा और मर्यादा के प्रति भी उतनी संवेदनशील होने की जरूरत है, कदाचित सावधान होने की भी।

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