हे नारी तू तो अबला है
कहकर हमसे तुम बड़े हो गये
जब चाहा हथियार बनाया
ढाल बनाकर खड़े हो गये।
कह प्रिये, संगिनी जीवन की
प्रणयी बनकर पुचकार दिया
जब कभी भार महसूस किया
झट दोष लगा दुत्कार दिया
संतति की वाहक कहकर के
जननी का महिमा-गान किया
पर कोख भरी जो कन्या से
तो विष से क्यूँ संधान किया
गृहलक्ष्मी, घर की देवी कह
चौखट के भीतर बिठा दिया
अर्जन के अवसर दूर किये
घर में परजीवी बना दिया
अपना कहकर अपनाया जब
सुख-सेज सजाना सिखलाया
वहशी बनकर जब टूट पड़े
डर लोक-लाज का दिखलाया
नारी के अधिकारों से
लड़ने को कितने धड़े हो गये
जब चाहा हथियार बनाया
ढाल बनाकर खड़े हो गये।
कहकर हमसे तुम बड़े हो गये
जब चाहा हथियार बनाया
ढाल बनाकर खड़े हो गये।
कह प्रिये, संगिनी जीवन की
प्रणयी बनकर पुचकार दिया
जब कभी भार महसूस किया
झट दोष लगा दुत्कार दिया
संतति की वाहक कहकर के
जननी का महिमा-गान किया
पर कोख भरी जो कन्या से
तो विष से क्यूँ संधान किया
गृहलक्ष्मी, घर की देवी कह
चौखट के भीतर बिठा दिया
अर्जन के अवसर दूर किये
घर में परजीवी बना दिया
अपना कहकर अपनाया जब
सुख-सेज सजाना सिखलाया
वहशी बनकर जब टूट पड़े
डर लोक-लाज का दिखलाया
नारी के अधिकारों से
लड़ने को कितने धड़े हो गये
जब चाहा हथियार बनाया
ढाल बनाकर खड़े हो गये।
(रचना त्रिपाठी)
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