एक महिला अधिकारी के द्वारा
अपनी निजता के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया कदम मीडिया को इसलिये नहीं सुहा
रहा क्योंकि उसने उन्हीं के सवाल पर उल्टा सवाल दाग दिया। उस महिला का सवाल ही उसका
सही जवाब था। पहले तो एक अन्जान युवक ने उस महिला के साथ जबरदस्ती सेल्फ़ी ली। जब
उसे निजता के उलंघन में डीएम ने जेल भेज दिया तो अब मीडिया अपने ओछेपन पर उतर आई
है। खुन्नस इतनी कि महिला के अधिकारों पर ही सवाल उठाने चल पड़ी है यह भांड मीडिया।
यह भी एक प्रकार का अतिक्रमण ही तो है। एक स्त्री के मना करने के बावजूद उसके साथ
युवक का सेल्फ़ी लेना, क्या यह आपत्तिजनक नहीं है? आपत्तिजनक क्या इसलिये नहीं होना
चाहिये कि वह महिला एक प्रशासनिक पद पर विराजमान है?
उस बेवकूफ़ संस्कारहीन लड़के
को जेल क्या हो गयी स्वयंभू समाज रक्षक चल पड़े सवाल दागने। जब स्वाभिमान की धनी
अधिकारी ने अपने प्रतिप्रश्नों से पत्रकार महोदय की बोलती बंद कर दी तो मानो
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ ही दरक गया। मीडिया वाले बिलबिला से गए हैं। उस महिला
अधिकारी की कमाई की पड़ताल शुरू हो गयी है। कोई यह तो बताये कि इस घटना के पहले
अख़बार वालों ने ऐसी पड़ताल क्यों नहीं की? साफ है कि सारा कोहराम बदले की भावना से
मचाया जा रहा है, ताकि फिर कोई इन छुछेरों की बदतमीज़ी के खिलाफ़ खड़ा होने की हिम्मत
न कर सके।
जरा सोचिये, अभी ये मामला
एक साधारण महिला का नहीं है बल्कि एक तेज तर्रार पढ़ी-लिखी, शक्तिसंपन्न महिला का है
तब हमारे तथाकथिक बुद्धजीवियों का ये हाल है; तो एक साधारण जीवन यापन करने वाली
किसी आम महिला की इस समाज में क्या स्थिति होगी?
आये दिन अखबारों में दो-चार
खबरें औरतों के साथ छेड़छाड़, अश्लील हरकत, ब्लैकमेलिंग, मारपीट, अपहरण, बलात्कार,
एसिड अटैक व हत्या कर दिये जाने की घटनाएं पढ़ने को मिलती रहती हैं। सोशल मीडिया पर
महिलाओं की तस्वीरों के साथ किस तरह की छेड़छाड़ होती रही है, यह भी किसी से छुपा
नहीं है। उस पर एक पत्रकार का यह सवाल पूछना कि मात्र एक सेल्फ़ी लेने की वजह से एक
युवक को जेल भेज दिया गया, बेहद भद्दा और अश्लील कृत्य है? क्या उसे एक स्त्री की
निजता के अधिकारों के बारे में कुछ भी नहीं पता जो पहले से आहत महिला के जले पर नमक
छिड़कने चल दिए?
कितनी लड़कियां समाज में
पुरुषों के हाथो पड़कर कथित तौर पर कलंकित होने की शर्म से आत्महत्या जैसा क्रूर
अपराध कर डालती हैं। मिडिया में खबर आती भी है तो संदेह के बादल पीड़िता के चरित्र
के इर्द-गिर्द ही घिरा दिये जाते हैं। परिणाम यह है कि आज भी इस तरह की सैकड़ों
खबरों का कोई पुरसाहाल नहीं होता।
ऐसे ही ढीठ युवकों ने राह
चलते कितनी लड़कियों के दुपट्टे खींचे होंगे और न जाने कितनी लड़कियों के नितंबों पर
भीड़ का सहारा लेकर अपने हाथ साफ किये होंगे। इसकी भनक उनके अपने परिवार वालों को भी
नहीं मिली होगी। मीडिया तो बहुत दूर की चीज़ है। क्योंकि औरत जब तक नुच- चुथ न जाय
मिडिया में कोई विशेष खबर नहीं बनती। ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं होती। ऐसी 'छोटी-मोटी'
बातों से उनके कानों पर जू तक नहीं रेंगती।
लेकिन जब बात एक पब्लिक
फिगर की हो और उसपर भी निशाने पर एक स्त्री हो, तो ये उसका छींकना तक मुहाल कर देते
हैं। यहाँ तो एक महिला कलेक्टर ने अनजान व्यक्ति द्वारा अपने साथ सेल्फ़ी लेने का
विरोध किया और नहीं मानने पर उसे जेल भेज दिया। भला इससे बड़ी खबर मीडिया के लिए और
क्या हो सकती है? संभव है कि कल को यही अखबार वाले महिला डीएम और उस लड़के के साथ की
सेल्फ़ी को चटपटी खबर बनाकर और संदेहास्पद स्थिति का संकेत देकर उसकी अस्मिता को
उछालते और सुर्खियां भी बटोरते!
इसलिए यह अच्छा ही हुआ जो
उस शरारती लड़के के साथ-साथ उस गैरजिम्मेदार पत्रकार को भी कठोर भाषा में उनकी सही
जगह दिखाने का हौसला इस महिला अधिकारी ने दिखाया। उन्हें हमारा सलाम।
(रचना
त्रिपाठी)
सलाम हमारा भी - प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDelete