Saturday, February 20, 2016

स्वच्छता अभियान की जय हो

कूड़े वाली गाड़ी आयी 
रम पम पम... पों पों पों
कूड़ा हम उठायेंगे, लखनऊ स्वच्छ बनायेंगे...
रम पम पम... पों पों पों
तेज आवाज में यह गाना गाती और भोंपू बजाती हुई यह गाड़ी सुबह 8.30 से 9 बजे के बीच मोहल्ले में आती तो सभी घरों से लोग कूड़े के थैले लेकर बाहर आ जाते। घरों के बच्चे तो कौतूहल से गाड़ी देखने और उसका संगीत सुनने ही निकल पड़ते थे। बच्चों के साथ बड़े भी कुछ देर के लिए इस नज़ारे को देखने बालकनी में निकल आया करते थे। इस पूरे खेल में कुल 10-15 मिनट लगते थे।
कूड़े-कचरे के उन्मूलन के लिये नगर निगम द्वारा की गयी यह पहल बहुत ही सराहनीय है, और कामयाब होते भी दिख रही है।

पर पिछले दो चार दिनों से यह रोचक संगीत सुनने को नहीं मिल रहा है। पता चला कि एक दिन हमारी ही बिल्डिंग के एक महोदय ने गाड़ी वाले को ज़ोर से डाँट कर भोंपू बजाने से मना कर दिया। उसके भोंपू बजाने से उनकी सुबह की नींद में खलल पड़ रहा था। तबसे वह नहीं बजाता। नाइट ड्यूटी करने वालों की सुबह की नींद भी जरुरी है। ऐसे में कूड़े वाले का शोर मचाकर घर घर से कूड़ा इकठ्ठा करने का अभियान इनकी नींद का सबसे बड़ा दुश्मन बन रहा था। सुविधा संपन्न लोगों को तो कमरे में विंडो ए.सी. की आवाज भी डिस्टर्ब कर देती है; भला इसके भोंपू की आवाज कैसे बर्दाश्त हो सकती है? अब गाड़ी रोज़ आती तो है पर चुपचाप। बच्चे दौड़कर बालकनी में उसे देखने नहीं जा रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि कूड़े वाली ट्राली कब आयी और चली गई।

आज मैंने तय समय पर बालकनी से नीचे झाँककर देखा तो ट्राली नीचे खड़ी थी। घरों से कूड़े के थैले आ रहे थे। सड़क पर ट्रैफिक की आवाजाही के शोर-शराबे के बीच ट्रॉली में कूड़े के ढेर से सटकर गहरी नींद में सोता हुआ कर्मचारी दिखा। यह किसी भी आवाज से बिल्कुल बेखबर, बेसुध सा पड़ा था। कोई शोर उसे डिस्टर्ब नहीं कर पा रहा था।

मेरे मोहल्ले की सड़कें और पार्क जिसपर कचरे का ढेर लगा रहता था अब ज़्यादा साफ़-सुथरी दिखने लगीं हैं। जिसने बच्चों  के अंदर भी सफ़ाई के प्रति नई जागरूकता पैदा कर डाली है। स्वच्छता के प्रति बड़ों से ज़्यादा बच्चों में उत्साह, उमंग और प्रतिबद्धता देखने को मिल रही है। घर में वे अब सफ़ाई के प्रति सजग तो रहते ही हैं बाहर भी इस अभियान को सफल बनाने में उनका बहुत ज़्यादा सपोर्ट मिल रहा है। राह चलते सड़क पर हम बड़ों से यदि ग़लती से भी कोई अवांछित पदार्थ गिर जाय तो वे फ़ौरन हमारी भी क्लास लगा देते हैं। बाहर कार की खिड़की से खरीदी हुई आइसक्रीम का रैपर वे संभाल कर घर तक लाते हैं और डस्टबिन में ही डालते हैं। अब टोके जाने के डर से बड़े-बूढ़े भी ऐसा करने को मजबूर हैं। यह सकारात्मक बदलाव मन में आशा जगाता है कि शायद अच्छे दिन ऐसे ही आएंगे।

(रचना त्रिपाठी)

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बड़ी बी की शर्तें - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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