Thursday, September 5, 2013

हिन्दी पर शरमाते भारतवासी

सुमबुल एक छोटे से कस्बे से आयी थी। वह शहरी तौर-तरीकों से परिचित नही थी। उन शहरी बच्चों की अपेक्षा उसे अंग्रेजी कम आती थी। जब वह क्लास में कोई प्रश्न पूछती थी तो उसे डाँट कर बैठा दिया जाता था। उसकी शिक्षिका उसे कहती थी कि तुम इस कॉलेज में पढ़ने लायक नहीं हो। डॉ. एमसी सक्सेना कॉलेज ऑफ फार्मेंसी, लखनऊ में 03 सितंबर दिन मंगलवार को बी. फार्मा प्रथम वर्ष की बीस साल की छात्रा सुमबुल ने  तीसरी मंजिल से कूद कर आत्महत्या करने का प्रयास किया। आत्महत्या की कोशिश किसी भी प्रकार से उचित नही ठहरायी जा सकती लेकिन ऐसी परिस्थितियां ही क्यों उत्पन्न होती हैं इस पर विचार किया जाना चाहिए।

रैगिंग जैसी प्रथा अभी जाने कितने मासूमों की जान के साथ खिलवाड़ करती रहेगी। यह प्रथा कानूनन अपराध की श्रेणी में है फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रही है। आखिर रैगिंग लेने वाले सीनियर छात्र ही तो हैं जो अपने जूनियर्स के साथ इस तरह का कुकृत्य कर जाते हैं। उन्हें आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर कर देते हैं। शिक्षण संस्थाओं में एक पीरियड रैगिंग जैसी कु-प्रथा पर क्यों नहीं चलाया जाता..? लेकिन इस कुप्रथा में शिक्षक भी लिप्त हो जायें तो शिक्षण के वातावरण को कैसे मजबूत बनाएंगे? अगर शिक्षक ही इन कुरीतियों को बढावा देंगे तो छात्रों का क्या होगा?

अब तो शहरी तौर-तरीकों का सिंबल ही अंग्रेजी जुबान हो गयी है। अंग्रेजों की दी हुई विरासत कितना संभाल कर रखा गया है हमारे हिन्दुस्तान में। अंग्रेज तो चले गये पर अंग्रेजियत को हमारे गले मढ़ गये। हर गली-कूँचे में इंग्लिश मीडियम स्कूल खुल गये हैं। जहां शिक्षक की पहली योग्यता यह होती है कि उसकी इंग्लिश-टंग है कि नही। अभिभावक भी तथा-कथित इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ाकर बहुत खुश रहते है, भले ही बच्चे को विषय की समुचित जानकारी हो या न हो, गणित, विज्ञान या मानविकी के विषयों में सतही योग्यता रखते हों लेकिन यदि अंग्रेजी में गिट-पिट करना सीख गये तो अभिभावक खुशफहमी के शिकार हो जाते हैं। भारतीय सभ्यता व संस्कृति के मूल्यों का जैसा क्षरण इन स्तरहीन इंगलिश मीडियम स्कूलों के जरिये हुआ है वह चिंताजनक है।

(रचना)

5 comments:

  1. एक किस्म की गुलामी का गौरव बोध है ये ! सार्थक आलेख !

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  2. यदि अंग्रेजी में गिट-पिट करना सीख गये तो अभिभावक खुशफहमी के शिकार हो जाते हैं। भारतीय सभ्यता व संस्कृति के मूल्यों का जैसा क्षरण इन स्तरहीन इंगलिश मीडियम स्कूलों के जरिये हुआ है वह चिंताजनक है।
    -सार्थक लेख

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  3. उन शहरी बच्चों की अपेक्षा उसे अंग्रेजी कम आती थी।
    अफसोसनाक! पता नहीं कब तक ये भाषाई दुराग्रह बने रहेगें

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