Saturday, January 2, 2021

आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम गुज़रा ज़माना बचपन का—

नए साल का पहला दिन। शीत लहर की वजह से पड़ती कड़ाके की ठंड। घर के पीछे वाले अहाते (खिरकी) में सुबह से एक बड़े से हंडे में खौलता पानी जो कई खेप में चूल्हे पर चढ़ता और उतरता रहता था। और मम्मी का वो होम-मेड, विटामिन डी व सी से भरपूर कई तरह के मिनरल्स युक्त लूफ़ा!

आप इसे एक हर्बल बाथ स्क्रब के रूप में समझ सकते हैं- जिसका निर्माण ककुम्बर प्रजाति की एक हरी सब्ज़ी से होता था। जिसको आप तिरोई के नाम से जानते हैं। हमारे यहाँ इसे घेवड़ा और नेनुआ भी कहा जाता है। सुनते थे कि यदि इसका हरीसब्ज़ी के रूप में सेवन करें तो बड़ा ही फ़ायदेमंद होता है। वह बाथ स्क्रब इसी नेनुआ को जेठ-बैसाख की गर्मी में सुखा-तपाकर तैयार किया जाता था। जब वह पूरी तरह से सूख कर कड़ा जालीदार खुज्जा बन जाता तो उसमें से बीज निकालकर पुनः अगले मौसम के लिए सँभाल कर रख लिया जाता था। बचपन में हमें तो कभी नेनुआ की सब्ज़ी पसंद आयी और ही इससे बना मम्मी का वो होम-मेड हर्बल बाथ स्क्रब।

मम्मी पता नहीं कैसे यह भाँप लेती थी कि जाड़े में उनके छोटे-छोटे स्मार्ट बच्चे बंद बाथरूम में अपने हाथों से अक्सर फ़्रेंच स्नान कर के भाग लिया करते हैं। इसलिए नये वर्ष के पहले दिन और खिंचड़ी (मकर-संक्रांति) के दिन उनके बच्चे इस तरह का कोई अंग्रेज़ी स्नान करें यह उन्हें बिल्कुल भी मंज़ूर नहीं था। इसलिए उस दिन वह इसका पहले से सारा प्रबंध करके रखती थीं। बारी-बारी से हम सबको उस हर्बल बाथ-स्क्रब में साबुन का घोल मिलाकर गर्म पानी से ऐसे रगड़ के नहलाती थीं जैसे लकड़ी के चूल्हे पर जली हुई कड़ाही की पेंदी से चिपका हुआ लेवा किसी मज़बूत ऊबसन से रगड़ कर छुड़ाया जाता है। इससे भी उन्हें संतोष नहीं होता तो बची-खुची जगह अपनी हथेलियों से वह तबतक रगड़ती थीं जबतक कि हमारी चमड़ी उनकी दोनों हथेलियों से चटचटा के चिंगारी निकाल दें।

इस तरह हम बाथरूम में घुसते तो थे ठंड से दांत किटकिटाते हुए लेकिन जब मम्मीके हाथों स्नान के बाद पूरे शरीर में नारियल के तेल का लेप लगवाकर बाहरनिकलते थे तो हमारे चेहरे से वैसी ही दीप्ति प्रज्ज्वलित होती थी जैसे उस चूल्हे चढ़े लेवा लगे हंडे के नीचे लपलपाती लपटें।

(रचना त्रिपाठी)



2 comments:

  1. घेवड़ा कहो या तोरी या तोरई और हमारे भोपाल में इसे गिलकी कहते हैं, यह जब सूखता है तो इसके अंदर का जाला सच में एड़ी और पीठ साफ़ करने के लिए बड़े काम आता है, हम तो आज भी इसका प्रयोग करते हैं , बर्तन साफ़ करने के लिए भी यह बड़ा काम आता है,
    बहुत सी बातें बचपन की याद आ रही हैं आपकी पोस्ट पढ़कर, फिलहाल
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. जी शुक्रिया। आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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