Thursday, August 27, 2020

दहिजरा कोरोना : भाग-2 (बारी में गारी)





(फोन पर सुनी लाइव कमेंट्री)
आज गांव के बगइचा में तमासा लगा है। इसके आगे बम्बइया सिनेमा और नौटंकी फेल है। थाने से हल्का वाले सिपाही भी पहुँच गए हैं। सोसल डिस्टेंसिंग गई तेल लेने। गाँव के लोग सरकारी फरमान को प्रशासन के मुँह पर फेंक कर उस तमासे का मजा लेने पहुँच गए हैं। घुरहुआ अपने मेहरारू के साथ जो कर रहा है उससे वहाँ बिना टिकट के ख़ूब बढ़िया डरामा देखने को मिल रहा है। उसकी बात सुनकर गाँव के लवंडे लहालोट हो रहे हैं। बड़े बुजुर्ग ठकुआ के देख रहे हैं और कुछ औरतें हैं जो अँचरा से मुँह तोपकर अपनी खीस निपोर रही हैं। कभी-कभी उसके दिल की पीड़ा सुनकर लोगों का कलेजा उमड़ पड़ रहा है। लंगड़ महतो तो कपार थाम के रोने भी लगे। उनकी अपनी मेहरारू की सूरत आंख में उतर आई जो इनका पैर तोड़ने के बाद इनके गुस्से का ऐसा शिकार हुई कि अब बिछौना पर ही सगरो करम कर रही है। इनकी एक ही लाठी में बेचारी का करिआँव छटक गया था। तबसे मर्द-मेहरारू का झगड़ा देखकर इनकी आँखे बढ़िया जाती हैं।

घुरहुआ जो बउराया है तो गलत नहीं है। बतिया तो सब सहिये बोल रहा है। वो सरकार के ऊपर इस बात से बहुते फिरन्ट है कि लॉकडाउन के बेरा नेता-परेता से लेकर सरकारी अफसर तक और पुलिस से लेकर सफाई कर्मचारी सभही उपदेस पर उपदेस झोंक रहे थे - "घर में रहिए, सुरच्छीत रहिए, नहीं तो कोरोना गरेस देगा।" सिपाही को देखकर उसकी आवाज और भी तेज हो गयी, "घण्टा रहिए घर में... इधर कुक्कुर-बिलार की तरह एक-दूसरे में लभेड़कर सब मजूरन को दिल्ली-बम्बई से ठेलकर उसके घरे गाँव में भेज दिया और कह रहा है कि दूर-दूर रहिए। हम इहाँ हंकासे-पियासे आये तो  ई हरामजादी हमें ज्ञान दे रही है कि मोदी कहें हैं दूरी बना के रहो। आज दस दिन से बगइचा में अकेले पड़े हैं। नेटुआ-नगारी बना के रख दी है।अरे हमको कुछ होना होता तो अबतक हो हवा गया होता!" 

यही बात वो अपनी मेहरी को कई दिन से समझा रहा था। आज पानी नाक के ऊपर हो गया तो आज उसने सब रीस निकाल के धर दिया। झोंटा पकड़ के घिरिया दिया और बड़ा बेदर्दी से मार रहा था। घुरहुआ-बहु का घिघियाना सुनकर लोग बगइचा में जुट गए। जब पुलिस आयी तो उल्टा उनसे इसी का ओरहन भी दे रहा है। कह रहा है – "कुत्ता बना के रख दी है हमको। दो-चार मिनट अगोर के ठाड़ तक नहीं रहती है। केरा के पत्ता पर रसोई फेंक के भाग जाती है।" इसपर बिग्गन का लौंडा  खेदना खिक्क से हँसकर भीड़ में लुका गया।

घुरहुआ अपनी रौ में कह रहा था, "एक दिन पानी पीने के लिए लोटा मांगे तो कहीं से खाली फेविकोल के डिब्बा काट के दूरे से धर दी, जैसे हम कोई पैखाना पोतकर बैठे हों। ...तभी से हम इसके ऊपर खून घोंट रहे थे, लेकिन तब्बो चुप रहे, कुछ न किए। हमरे साथ के बाकी लोग का कुँवरटीन का टैम बीत गया। वो अपने घर लोग-लइका के पास पहुंच गये और हम है कि इहाँ बइसाख-जेठ के दुपहरिया में अकेले पाक रहे हैं। इतना लंबा सफर पैदल चल के आए। इहाँ आये तो इकर नौटंकी चालू हो गयी।"

बात अब समझ में आई। हुआ ये था कि गाँव के   बाग में अकेले उसका मन नहीं लग रहा था। उसने शायद किसी दिन उससे बोला कि दोपहर में माई-बाबूजी को खिला-पिला के मेरे पास आ जाना लेकिन वो बहटिया दी, नहीं गई। तबसे वो गुस्से से भरा हुआ घात लगाकर लबदी सोहरा रहा था। यही गुन रहा था कि वो कहीं अकेले में भेंटा जाय तो बदला ले सके; और हुआ भी यही।

आज दुपहरिया में जब भूजा-भरी लेकर आई तो वह टूट ही पड़ा। बेचारी भाग ही नहीं पाई। मार के उसका भूभुन फोड़ दिया है। मुँहे राहे खून फेक रही है। ई मामा लोग लाठी-बंदूक लेके वहीं खड़े थे। घुरहुवा के आगे उनकी बुद्धि भिला गई थी। करें तो क्या करें? छउक-छउक के उन्हें ललकार रहा था - "आओ हमको पकड़ो और थाने ले चलो, नहीं तो अभी तो खाली इसका मुँह फोरे हैं, छोड़ के गए तो इसका गटइए दबा देंगे। भले से हमको जेल हो जाय बाकिर जिंनगी में अब कभी इसका मुँह नहीं देखेंगे। ए तरे जियले से तो निम्मन है कि हम मर ही जाएं। ए साहब, लगाओ हमको हतकड़ी और इहाँ से ले चलो।"

घुरहुआ गाँव भर के सामने पुलिस के आगे फेकर-फेकर के रो रहा है। पुलिस वाले भी उसको हाथ नहीं लगा रहे। अब घुरहुआ-बहु बड़ी सांसत में पड़ गई है। लामे-लामे रहे तो घुरहुआ मारे और उसके नियरे जाय तो कोरोना। बेचारी करे त का करे?

करिआँव=कमर, फिरन्ट=नाराज, लबदी=लाठी
डंडा, सोहराना= सहलाना, ओरहन=शिकायत, भुभून=जबड़ा, लामे- लामे=दूर-दूर, नियरे=नजदीक

(रचना त्रिपाठी)

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