Monday, May 4, 2020

ऑनलाइन शिक्षा में कितनी समानता?

लॉकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को अपनाते सभी शैक्षिक संस्थानों कक्षा नर्सरी से लेकर जूनियर हाईस्कूल स्कूल, इंटर, कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालय तक, सरकारी हो अथवा प्राइवेट दोनों ही इसे अपने कठिन परिश्रम के बदौलत सफल बनाने में रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। यह तकनीक कितनी व्यवहारिक है? क्या इसका वास्तविक लाभ समाज के सभी तबके को मिल पाना संभव है? सभी बच्चों को शिक्षा का समान अवसर प्राप्त हो ऐसी सरकार की नीति कहती है। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा इस सामाजिक ढांचे में कितना फिट बैठेगी? 

इस अवधि में यह तकनीक निश्चित तौर पर कारगर हो सकेगी लेकिन सीमित वर्गों तक ही। शिक्षा का उद्देश्य वृहत्त होना चाहिए जिससे हर वर्ग को इसका लाभ बराबर मिले। लॉकडाउन के चलते निश्चित तौर पर बच्चों की पढ़ाई पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। परन्तु सिलेबस से इतर भी बच्चों को बहुत कुछ पढ़ाने और सिखाने की जरूरत है जैसे स्किल्स को बढ़ावा देना, अपने इतिहास की जानकारी देना, पौराणिक कथाओं के माध्यम से उन्हें नैतिक शिक्षा का ज्ञान देना। यह सभी चीजें इस दौरान बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। जिसपर कोई परीक्षा आधारित न हो जिससे किसी भी बच्चे के रिजल्ट पर किसी भी प्रकार से गैरबराबरी का प्रभाव ना पड़े। 

स्कूल प्रबंधन को इस बिंदु पर अपना ध्यान जरूर देना चाहिए। आज के दौर में निम्न-मध्यम वर्ग से जुड़े अभिभावक भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई का एक अहम हिस्सा उनके आस-पास के नामी प्रतिष्ठानों में एडमिशन के लिए  लगा देते हैं। ऐसे में यदि एक ही परिवार में अलग-अलग उम्र के दो-तीन बच्चे भिन्न-भिन्न कक्षाओं में पढ़ते हों तो प्रत्येक बच्चे के लिए ऑनलाइन क्लासेस के लिए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे स्मार्टफोन/लैपटॉप/कम्प्यूटर पर अतिरिक्त खर्चे का वहन कर पाना उस परिवार के लिए मुश्किल है! 

परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की अनुपलब्धता को देखते हुए भले ही सरकार उन्हें नाश्ता-पानी, भोजन, यूनिफार्म से लेकर स्कूल बैग कॉपी-किताब तक मुफ्त मुहैया करा रही है। तब भी उनके अभिभावकों से ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के नख़रे झेल पाना आसान नहीं है। जहाँ रोटी के लाले पड़े हों वहाँ हाथों-हाथ बिजली, स्मार्ट-फोन, कम्प्यूटर और डेटा-पैक क्या उनकी गरीबी का उपहास नहीं है?
(रचना त्रिपाठी)

1 comment:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति वैसे हर काम ऑन लाइन ही हो रहे हैं ....

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