मां का दिया हुआ यह कजरौटा हर साल दीपावली में सेंके गये काजल से लोड होता है। अपना काम तो सालों-साल इससे ही चल जाता है। लेकिन बगल में खड़ी इस ढाई इंच की काले-जादू की डिबिया को देखिए। इसने अपनी काली लकीर से सजी कनखियों की लहर से जो कमाल दिखाया है उससे सारा देश ही ऊपर-नीचे हो गया है। कजरारे नैनों के तीर से सारा देश घायल है। दिल फेंक नौजवानों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक और संस्कारी लड़कों से लेकर मुल्ला-पंडित तक सभी अपनी-अपनी चोट सहला रहे हैं।
यह जादुई मसाला इस पात्र के जिस हिस्से में रखा है वह तो सिर्फ अंगुल भर का है, बाकी लंबा हिस्सा तो इस नटखट के लटके-झटके जैसा है। वह कल्लू इस पात्र की तलहटी में बैठा पड़ा है जिसको आकर्षक आवरण से छिपाकर बाजार में इसकी ऊंची कीमत लगा दी गयी है। ऊंची कीमत पर बिकने या दूसरों के आगे चमकने के लिए श्रृंगार तो कोई भी करता है। फिर काजल की डिबिया भी क्यों नहीं? उसपर यह किसी फेमस ब्रांड का दुशाला ओढ़ ले तो क्या पूछना– चार-चाँद ही लग जाते हैं। लेकिन इस बेचारी के करम फूटे कि मेरे हाथ लग गयी। मैं इसका समय रहते वैसा इस्तेमाल नहीं कर पायी, न ही किसी और को टिका पायी। अब यह प्रयोग के अभाव में या यूँ कहूँ कि बिना किसी की आँखों के साथ नैन-मटक्का किये ही, वैनिटी बॉक्स में पड़े-पड़े काल-कवलित हो गयी है। मतलब एक्सपायर डेट को प्राप्त हो गयी है।
एक गृहिणी-सुलभ जतन करने की आदत जो न करा दे। सोचा अब कूड़े में फेंके जाने से पहले सोशल-मीडिया पर इसे भी थोड़ा सम्मान मिल जाये तो क्या बुरा है? आखिर जिसने किसी की आँखों में बस कर रातों-रात लाखों लोगों को उसका दीवाना बना दिया हो, बिना किसी औषधि के जाने कितनों के मोतियाबिंद छू-मंतर कर दिये हों और कितनों के सामने दिन में ही रात का मंजर खड़ा कर दिया हो उसे ऐसे कैसे फेंक दिया जाय। इसपर लाइक्स तो बनती हैं।
ऐसे में उस पुरानी कहावत को तोड़-मरोड़कर कहूँ तो _"काजल की डिबिया को ऐसे क्यूँ छोड़ा जाय, एक 'लाइक' काजल पर लागिहै ही लागिहै।"_
Aapne bahut hi behtar hindi kahani atayi hai
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