Wednesday, August 23, 2017

अधूरी आशा

शायरा आज दस बजे से ही टीवी से चिपकी थी। दिन भर चैनेल बदल-बदलकर एक ही ख़बर देखती रही। सास-बहू वाले सीरियल भी आज इस ख़बर के आगे फीके थे। ठीक पाँच बजे दरवाजे की घंटी बजी। अरे, अभी इस समय कौन हो सकता है...! दुपट्टा सम्हालते हुए दरवाजा खोला तो शौहर खड़े थे, आज कुछ अलग मुस्कान लिए हुए। चकित होकर पूछा– क्या हुआ, आज इतनी जल्दी?

शौहर ने उसे हौले से पकड़कर अंदर आने का रास्ता बनाया। वह अचकचा कर पीछे हट गयी। सामने वाली भाभी जी एकटक जो देख रही थी। चट दरवाजा बंद कर अंदर की ओर मुड़ी तो इरफान मियां गुनगुना रहे थे– "आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है"

ऑफिस बैग सोफे पर पटका जा चुका था। उसकी दोनों बाहें फैली हुई शायरा की ओर बढ़ीं और इरफान ने उसे नजदीक खींच के उसकी कमर को दोनों ओर से जकड़ लिया– "जी करता है आज तुम्हारी आंखों में आँखे डाले यूँ ही देखता रहूँ।"

शायरा– माजरा क्या है? आज अचानक बहकी-बहकी बातें करने लगे। तबियत तो ठीक है?

इरफान– नहीं रे पगली, अब मैंने सोच लिया है। जो भी जिंदगी अल्लाह ने बख्शी है उसे प्यार से जीकर ही गुजारना है। सच्चे दिल से कह रहा हूँ।

जी-न्यूज पर शोर-शराबे वाली बहस चल रही थी। एक मौलाना जी चीख रहे थे– आप लोग तो ऐसे बात कर रहे हैं कि जैसे कोर्ट ने तलाक का अख्तियार एकदम से खत्म कर दिया है। असल बात कुछ और ही है...

शायरा ने रिमोट उठाकर टीवी बन्द कर दिया और इरफान के सीने से लग गयी– सच में प्यार करोगे मुझे? ऊपर की जेब मे रखी कलम उसके गाल पर चुभ रही थी। इरफान मौन होकर कुछ सोच रहा था।

शायरा ने जेब से कलम निकालकर किनारे रख दी,  "दो दिलों के बीच में इस पेन का क्या काम? सुना नहीं है, फूल भी हो दरमियां तो फ़ासले हुए"
"अरे यार, वो मौलाना जी क्या कह रहे थे? टीवी क्यों बन्द कर दिया? जरा रिमोट देना..."

"ओहो, तो ये बात है..!" अपनी कमर से उनका हाथ झटकते हुए मुंह बिचकाकर बोली– "बड़े आये, आज फिर जीने की तमन्ना है ...हुँह! कल तक क्या घास छील रहे थे... अभी काहें मरने का इरादा बना रहे हो? अभी तो सिर्फ तीन तलाक पर रोक लगी है। बाकी द्वार तो खुल्ले ही पड़े हैं, ...वो भी आजमा लो तो मरिहो"

टीवी पर बहस जारी थी– तलाक-ए-बिद्दत, तलाक-ए-अहसन, निकाह-ए-हलाला, तलाक-उल-सुन्नत...

शायरा ने चुपचाप सोफे से बैग उठाया, कलम को शर्ट की जेब में वापस रखा और बोली– "कपड़े बदल लो चाय लेकर आती हूँ।"

(रचना त्रिपाठी)

6 comments:

  1. सुन्दर कहानी ! 'कलम'के expressive प्रतीकात्मक प्रयोग के साथ साथ चरित्र के grey स्वरुप के लिए साधुवाद ।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’गणेश चतुर्थी और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 30अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सुन्दर, कलम की तरह चुभते संदेश!

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  5. वर्षों से कुंद खोपड़ी में प्यारभरी बातें कहाँ टिकती हैं
    बहुत सही

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  6. बहुत सुन्दर

    http://rinkiraut13.blogspot.in/

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