साधारण परिवार में जन्मीं एक बेटी जो आगे चलकर “डेली सोप” की बहू बनी और बहू से फिर ‘मंत्री’ तो कोई खास योग्यता तो जरूर रही होगी। ऐसे में बार-बार इनकी पात्रता पर सवाल खड़ा कर इनके मन को बेवजह तकलीफ दी जा रही है… योग्यता या पात्रता के लिए किसी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय का प्रामाणपत्र हो यह जरूरी तो नहीं। विद्या अथवा ज्ञान तो कहीं से भी प्राप्त किया जा सकता है। इसका स्रोत निर्मल बाबा की ‘किरपा’ हो या ‘डेली सोप’।
यदि कुछ खास लोगों की कृपा बनी रहे तो पात्रता के बगैर भी पद और प्रतिष्ठा प्राप्त की जा सकती है। अब अपनी स्मृति को ही ले लीजिए जिनपर साक्षात् “मोदी” की माया है। नहीं तो क्या इस देश में टीवी की बहुओं अथवा साधारण परिवार की स्त्रियों की कमी है? क्रिकेट के भगवान सचिन तेन्दुलकर की डिग्री भी तो किसी से छुपी नहीं है जो आज राज्यसभा में सांसद के पद पर आसीन हैं। यह बात अलग है कि राज्य सभा में वह गाहे-बगाहे भी नजर नहीं आते हैं। जब भगवान ही हैं तो संसद में उनके फोटो से भी काम चलाया जा सकता है। रेखा का सिलसिला तो बहुत पुराना हो गया है। लोगों को इसपर इतना बावेला मचाने की क्या जरूरत है? बस किरपा बरसाने वाले बने रहें... इस देश को और क्या चाहिए...?
जब किरपा से सब कुछ उपलब्ध हो जाता है तो डिग्री के लिए इतनी माथा-पच्ची क्यों...? इन मंत्रियों और सांसदो के नीचे काम करने वाले उन अधिकारियों की हालत तो देखिए...। बेचारे..., ये सभी स्नातक, परास्नातक करने के बाद भी तमाम किताबें घोटकर वहां तक पहुँचने में अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। इतने पढ़े –लिखे होने के बावजूद ये अधिकारी उन्हीं मंत्रियों और नेताओं के अधीन काम करते है। क्या गरज थी इन्हें इतनी डिग्री बटोरने की…? किसी की किरपा मांग लेते...।
शास्त्रों में कहा गया है कि- “विद्या से विनय की प्राप्ति होती है और विनय से व्यक्ति सुपात्र बनता है।” यहां राजनीति में क्या इस श्लोक की आवश्यकता है…? नहीं न…? अरे जब फूलन देवी सांसद बन सकती हैं और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्हाल सकती हैं तो आप ही बताइए कि “किरपा” में ज्यादा ताकत है या डिग्री में?
अपात्र तो धरती पर बहुत पड़े हैं लेकिन सभी पर किसी महापुरुष की किरपा नहीं बरसती। उसको पाने के लिए ज्ञान और कर्म की थाती हो ना हो, अच्छे भाग्य, राजकुल वंशावली, उससे वैवाहिक संबंध अथवा कलियुगी कला जैसे चाटुकारिता, असाधारण सेवा धर्मिता जैसे उपायों की जरूरत पड़ती है। इसमें कहीं कोई कमी नहीं आनी चाहिए। ये मार्ग अपनाकर छुटभइए भी बहुत उच्च पदों पर विराजमान हो सकते हैं। इसके मूल में बस वही है- किसी व्यक्ति विशेष की “किरपा”।
(रचना त्रिपाठी)
जब भगवान ही हैं तो संसद में उनके फोटो से भी काम चलाया जा सकता है।
ReplyDeleteसही लिखा। खूब।
यहाँ कुछ भी हो सकता है!-अनुपम खेर का सीरियल कलर्स पर देखिये
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