तिहवारी देने का प्रचलन हमारी सदियों पुरानी परंम्परा से चला आ रहा है। घर में काम करने वाले नौकर-चाकर, धोबी-मोची, स्वीपर आदि छोटे कर्मचारियों एवं समाज में रहने वाले छोटे तबके के लोगों को होली, दिवाली जैसे त्यौहारों पर कुछ पैसे, अनाज, कपड़े जैसी बस्तुएं दी जाती है जिसे हम तिहवारी के नाम से जानते है। सगे-संबंधियों के यहाँ से आने वाले नाई-कहाँर को भी तीज-त्यौहार के समय तिहवारी देकर विदा करने का रिवाज बहुत पुराना है।
त्यौहारों के आगमन में हम महीनों पहले से इसकी तैयारी के लिए जुटे रहते है; जैसे- होली-दिवाली हो या दशहरा, किसी का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह; इन सभी कार्यक्रमों में सबसे महत्वपूर्ण काम होता है गिफ्ट का लेन-देन। जितना समय घर की साफ-सफाई और साज-सज्जा पर नहीं लगता है उससे कहीं ज्यादा समय यह सोचने और करने में लग जाता है कि किसको क्या और कैसा गिफ्ट देना है । घर हो या दफ्तर, सचिवालय हो या मंत्रालय; गिफ्ट का आदान-प्रदान सब ओर होता रहता है। बस उसके तौर-तरीकों, उनके मूल्य व प्रकार को देखकर गिफ्ट पाने वाले व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। खरीदारी के समय गिफ्ट के चुनाव के साथ-साथ उसकी पैकिंग में भी प्रोटोकॉल का ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है।
मैं सोच रही थी कि तात्विक रूप से तिहवारी और गिफ्ट में कोई खास अंतर नहीं है। दोनो मामलों में देने वाले का उद्देश्य लेने वाले को खुश करना होता है। खास त्यौहारों के अवसर पर सेवक टाइप कर्मचारियों को उनके मालिक या गृहिणियों द्वारा जो बख्शीश दी जाती है वह तिहवारी है और जब ऐसे ही अवसरों पर छोटे कर्मचारी या अधिकारी अपने बॉस या वरिष्ठ अधिकारी को कुछ भेंट करते है तो उसे ‘गिफ़्ट’ कह देते हैं। मैंने एक ही व्यक्ति को अलग-अलग लोगों को तिहवारी बाँटते और गिफ़्ट लेते तथा गिफ़्ट देते देखा है। समाजिक पायदान पर वह जहाँ खड़ा है उसी के अनुसार यह आदान-प्रदान आकार लेता है। इसको समझने के लिए दी जाने वाली वस्तु या कैश की मात्रा पर एक नजर डाले तो पता चल जाता है कि क्या तिहवारी है और क्या गिफ्ट। लेने व देने वाले की हैसियत का पता भी यह सामग्री दे देती है।
गिफ्ट के मामले में लेने वाला इसकी डिमांड नहीं करता जबकि तिहवारी लेने वाले पीछे पड़कर ले लेते हैं। गिफ़्ट शौकिया दिया जाता है या भयवश इसमें विद्वानों में मतभेद है। किसी वांछित कार्य के हो जाने पर या अवांछित कार्य के रुक जाने पर जो खुशी मिलती है उसे प्रकट करने के लिए अपने संबंधित अधिकारी या मंत्री को गिफ़्ट दिया जाता है। लेकिन कभी कभी उस खुशी की प्रत्याशा में पहले ही गिफ़्ट टिकाना पड़ता है; वह भी आकर्षक पैकिंग व वजन के साथ। इसकी तुलना में तिहवारी देने में इतना टिटिम्मा पालने की जरूरत नही पड़ती। उसे झोले में लटकाकर दिया जाय, किसी प्लास्टिक में बांध कर दे दीजिए या वैसे ही खुले में थमा दीजिए पाने वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता।
गिफ्ट देने वाला तो महान होता है लेकिन गिफ्ट पाने वाला उससे भी कहीं ज्यादा बड़ा महान व्यक्ति होता है। जिसका जितना बड़ा गिफ्ट, उसकी उतनी बड़ी इज्जत होती है। तिहवारी तो हर व्यक्ति अपनी हैसियत के अनुसार दे सकता है; लेकिन गिफ्ट देने के लिए अपनी पॉकेट से पहले उस व्यक्ति की हैसियत देखनी पड़ती है जिसे गिफ्ट देना होता है।
(रचना त्रिपाठी)
तिहवारी और गिफ्ट का अंतर बखूबी स्पष्ट हुआ !
ReplyDeleteयह फर्क आपने खूब समझाया
ReplyDeleteअभी नजराना शुकराना और जबराना भी समझना है :-)
तिहवारी और गिफ्ट में एक बुनियादी अंतर मुझे ये लगता है कि तिहवारी को पहुनी लोग अपना अधिकार समझते हैं. आज भी समझते हैं. पाकर भी वो बड़प्पन महसूस करते हैं और देकर आप भी. इसमें कोई किसी को छोटा नहीं बनाता. लेकिन, गिफ्ट (ख़ासकर कॉर्पोरेट गिफ्ट) की दिक़्क़त ये है देने और पाने वाले दुइ के दुन्नो गिर गए लगते हैं...
ReplyDeleteसही कहा। तिहवारी की मात्रा (नगदी मूल्य) गिफ़्ट की तुलना में रेजगारी जैसी नहीं होती...?!
Deleteगिफ़्ट और त्योहारी के अन्तर साफ़ हुये।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट!