Wednesday, October 16, 2013

गरीबों के अनाज पर डाका..

खाद्य सुरक्षा कानून पर महामहिम के दस्तखत की स्याही अभी सूखी भी नहीं होगी कि इसके माध्यम से मिलने वाले सस्ते अनाज की कालाबाजारी की खबरें न्यूज चैनेलों में सुर्खियाँ बटोरने लगीं हैं। आजतक न्यूज चैनल ने सरकार की सवा लाख करोड़ की सबसे बड़ी योजना के काले सच का खुलासा किया है। देश की राजधानी से ही शुरू हो गया खाद्य सुरक्षा के अनाज की कालाबाजारी का गोरखधंधा। गरीबों का पेट भरने की दलील देने वाली सरकार इस कालेधंधे की सच्चाई से अछूती तो नहीं होगी। इस घोटाले में नौकरशाह और राजनेता दोनों ही संलिप्त नजर आ रहे हैं।

लगता है कि सरकार को गरीबों की भूख की फिक्र कम, अपने चुनाव में होने वाले खर्चे की चिंता ज्यादा सता रही है। शायद इस योजना के तहत सरकार की एक अलग योजना पूरी करने की साजिश रही है, तभी तो सरकार ने चुनाव होने के शीघ्र पहले ही इस योजना को लागू किया ताकि इनके खजाने में कहीं कोई कमी आए बगैर चुनाव लड़ा जा सके। नहीं तो इतने सालों तक गरीबों के भूखे पेट की ओर से यह सरकार क्या आँख पर पट्टी बांधे बैठी रहती? सरकार के मंत्री से लेकर अधिकारी तक सभी इस योजना में हो रही कालाबाजारी में संलिप्त लगते हैं। गरीबों को दो रुपये में मिलने वाला गेहूं निजी आटा चक्कियों पर बारह रूपये मे बेचा जा रहा है। थाने से लेकर फूड इंस्पेक्टर का बंधा हुआ है कमीशन।

खाद्यसुरक्षा योजनाओं से लाभ लेने वाले पात्र लोगों के पास तो राशन कार्ड भी नहीं है; और ना ही इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी किसी पात्र गरीब का राशन कार्ड समय से बना पा रहे हैं। मेरे घर में बर्तन माँजने वाली जो अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए प्रतिदिन लगभग दस घरों में काम करती है, बताती है- “मै सालों से दौड़ रही हूँ, मेरा न तो कोई कार्ड बना और ना ही कभी कम दाम में मुझे अनाज ही मिला।” इस योजना की सच्चाई यह भी है कि गरीबों के अनाज पर डाका डालने के लिए फर्जी राशन कार्ड भी बनाए जा रहे हैं। लगता है कि यह मूक-बधिर सरकार अपने स्वार्थ के आगे अब अंधी भी हो गयी है। लोक-लुभावन योजनाओं की आड़ में गरीबों के पेट पर लात मारती सरकार संवेदना विहीन एक काठ का पुतला नज़र आती है।

(रचना)

5 comments:

  1. सरकारें ऐसी योजनाओं कोलाकर भ्रष्टचार को बढ़ावा देती हैं और ईमानदार कर्मचारियों का जीना मुहाल -आपने सही परिप्रेक्ष्य रखा है

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  2. योजनायें ऐसे ही अपने उद्धेश्य की पूर्ति के गड़बड़ी का कारण बनती रह्ती हैं। सही लिखा।

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  3. आज कुछ मीठी-मीठी बातें होती तो ठीक होता। सोलह अक्तूबर जो है... :)
    हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  4. सरकारों की चिंता गरीबों की भूख की नहीं है बल्कि अपनी वोटों की भूख की चिंता है !!

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  5. बहुत सही .वोट की राजनीति में कई अच्छी योजनाएं गुम हो जाती हैं .
    नई पोस्ट : लुंगगोम : रहस्यमयी तिब्बती साधना

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