भोजपूरी में एक कहावत है “जबरा मारे रोवहूँ न दे”। राज्य सरकार की नीयत कुछ ऐसी ही लगती है। जनता के मुँह में जानवरों की तरह जबरदस्ती जाबी (muzzle) लगाने के फिराक में जुटी है। अभिव्यक्ति की आजादी की तो बात ही छोड़ दीजिये यह तो अब लोकजनों का दाना-पानी भी बंद कर सकती है। आखिरकार कबतक लोकतंत्र के नाम पर जनहित की ठेकेदार होने का स्वांग करती रहेगी? कँवल भारती जी ने ऐसा क्या गलत कह दिया जो उनके खिलाफ़ मुकदमा कायम हो गया...?
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बहुत अफसोसजनक है! यह लोकशाही है या तानशाही ?
ReplyDeleteलोकशाही के नाम पर तानाशाही है. निंदनीय कृत्य.
ReplyDeleteरामराम.
सही है। बड़ा कठिन समय है! जबरा मारे रोवन न देय।
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