Thursday, August 8, 2013

जनता के मुँह पर ढक्कन

भोजपूरी में एक कहावत है “जबरा मारे रोवहूँ न दे”। राज्य सरकार की नीयत कुछ ऐसी ही लगती है। जनता के मुँह में जानवरों की तरह जबरदस्ती जाबी (muzzle) लगाने के फिराक में जुटी है। अभिव्यक्ति की आजादी की तो बात ही छोड़ दीजिये यह तो अब लोकजनों का दाना-पानी भी बंद कर सकती है। आखिरकार कबतक लोकतंत्र के नाम पर जनहित की ठेकेदार होने का स्वांग करती रहेगी? कँवल भारती जी ने ऐसा क्या गलत कह दिया जो उनके खिलाफ़ मुकदमा कायम हो गया...?

(रचना)

3 comments:

  1. बहुत अफसोसजनक है! यह लोकशाही है या तानशाही ?

    ReplyDelete
  2. लोकशाही के नाम पर तानाशाही है. निंदनीय कृत्य.

    रामराम.

    ReplyDelete
  3. सही है। बड़ा कठिन समय है! जबरा मारे रोवन न देय।

    ReplyDelete

आपकी शालीन और रचनात्मक प्रतिक्रिया हमारे लिए पथप्रदर्शक का काम करेगी। अग्रिम धन्यवाद।