Monday, June 22, 2009

घर में लगा कम्प्यूटर... क्या नीचे क्या ऊपर?

टूटी-फूटी शुरू करने के बाद एक सज्जन ने मेरे मेल पर सन्देश भेंजा कि उनको कम्प्यूटर के बारे में सरल भाषा में जानकारियाँ चाहिए जो उनके स्कूल में बच्चों के काम आ सके। कम्प्यूटर का ज्ञान देने के लिए उनको मुझसे बेहतर शायद और कोई नही दिखा। ऐसा उनकी पारखी नज़र के धोखे के कारण ही हुआ हो तो भी मुझे बहुत खुशी हुई यह जानकर कि किसी ने तो मुझे पहचाना।

मैने चटसे जवाब भेंज दिया, “भाई साहब, सबसे पहले तो आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, जो आपने मुझे इस लायक समझा।”

अपने वादे के मुताबिक मैं कम्प्यूटर के बारे में अपने महान ज्ञान को यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ। जिस लायक समझा जाय उस रूप में प्रयोग की छूट है।एक ही रुटीन

कम्प्यूटर से हमें ढेर सारी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, जो हमें देश-दुनिया के बारे में बताता है। इससे हमें अनेक प्रकार के रंग-बिरंगें ब्लॉग पढ़ने को मिलते है।

कम्प्यूटर से हमें भिन्न-भिन्न प्रकार के लाभ मिलते हैं :-

१. जब हमारे घर में कम्प्यूटर होता है तो हमें बाहर घूमने जाने का मन नही होता जिससे पतिदेव तो प्रसन्न रहते हैं मगर बच्चे नाखुश।

२. घर में कम्प्यूटर के आ जाने से पतिदेव हर वक्त प्रसन्न दिखते हैं। भले ही आफिस से आने के बाद उन्हें चाय नाश्ते के लिये ना पूछो उन्हें कोई गिला नही होता। हाँ, अगर उन्हें अचानक याद आ भी गया कि मुझे आज चाय नही मिली है, तो उन्हें समझाया जा सकता है- यह कहकर कि “अरे!..अभी-अभी तो चाय पिलाये थे, भूल गये क्या?” इसपर वे इस बात को सहर्ष स्वीकार लेते हैं।

३. घर में कम्प्यूटर की वजह से टीवी का एक भी सीरियल डिस्टर्ब नहीं होता है। पतिदेव कम्प्यूटर पर और बीबी टीवी के पास, बच्चे भी मौज कर रहे होते हैं।

४. पतिदेव को कभी अपनी पत्नी से यह शिकायत का मौका नही मिलता कि “तुम मुझे समय नही देती हो।”

५. अगर पड़ोसी से बात करते समय बच्चे डिस्टर्ब कर रहे हों, तो उ्न्हें भी कम्प्यूटर पर बिठा दो। फिर देखो, है ना सबकी मस्ती!

कम्प्यूटर से थोड़े नुकसान भी उठाने पड़ते हैं:

१.पतिदेव के कम्प्यूटर पर देर तक बैठने से पेट का आकार गणेश जी का अनुसरण करता हुआ अन्ततः शिवजी के नन्दी बैल की बराबरी पर जाकर रुकता है।

२.कंप्यूटर पर देर तक बैठने से और भी तरह-तरह की शारीरिक बिमारियाँ दावत देने लगती है जिससे कम्प्यूटर पर बैठना भी दूभर हो जाता है।

३.यदि यहाँ एक बार ब्लॉगरी का चस्का लग गया तो इतनी व्यस्तता हो जाती है कि पीछे से एक बार की कही बात सुनायी ही नहीं देती है।…हाँ, अगर सुनायी दे भी गयी तो अचानक इतना जोर से जवाब मिलता है कि अगर कोई कमजोर दिल की गृहणी हो तो सीधा राम-नाम सत्य…।

४.अब बच्चों का क्या कहें? जब हम लोग छोटे थे तो कोई मेहमान आने वाला होता था, सबसे पहले तैयार होकर उसके आने का बेसब्री से इंतजार करते और बड़े उत्साह से स्वागत करते थे। लेकिन आज कल के बच्चे, इस कंम्प्यूटर के चक्कर में मेहमान कब आये और कब गये इनको पता ही नही चलता। अगर कोई बच्चों से मिलने की इच्छा जताता है तो इन्हें बड़े आग्रह के साथ बुलाना पड़ता है। तब भी इनका चेहरा ऐसे लटक जाता है जैसे मेहमान ने इनका सबसे प्रिय खिलौना तोड़ दिया हो, और यह एक ‘नमस्ते’ का डंडा मारकर चले जाते हैं।

क्रमश:

रचना त्रिपाठी

23 comments:

  1. वैधानिक चेतावनी: इसे मेरे घर की कहानी न समझा जाय। :)

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  2. आपने लिखा तो व्यंग की भाषा मे है. हमारा पेट तो गणेश नही हम पूरे हाथी बाबा होगये हैं.

    आपको सलाह दी जाती है कि आपको मेरे बारे में सारा सच लिखने की वजह से मानहानि का नोटीस दिया जा सकता है. अत: मेरे बारे मे जो भी सच बाते बताई हैं उन्हे अविलंब हटाया जाये. आपने पूरी मेरी पोल खोल कर रख दी है.:)

    रामराम.

    [क्षमा करियेगा..आजकल ब्लाग जगत मे इस तरह की मुकदमे करने की धमकी देने का फ़ैशन सा चल पडा है. :)]

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  3. ग्रेट! घर घर की कम्प्यूटरिया राम कहानी?

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  4. शानदार । लाभ-हानि से परिचित हो लिये बखूबी ।

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  5. पहले पूरा पढ़ लूं ,वैसे यह कम्प्यूटर वाले घर घर की कहानी है !

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  6. बहुत खूब लिखा आपने, कम्‍प्‍यूटर की कहानी को सबकी कहानी बना दिया, बधाई

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  7. कहानी हर घर के कंप्यूटर की .....एकता कपूर को नए सीरियल का शीर्षक मिल गया ...

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  8. मेरी श्रीमती जी तो रोज ही दस बात बोलती हैं कि क्या कम्प्यूटरवा पे खटर-पटर लगाये रहते हो....बच्चों को पढा ही दिया करो ....सब्जी ला दिया करो......अब तो लगता है सब लोगन के यहाँ यही किस्सा है :)

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  9. साधना से फोन पर बात हुई थी क्या? वैसा का वैसा ही लिख डाला. :)

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  10. aapko toh is par ph.d karni chahiye
    waah waah
    ye hai kahaani ghar ghar ki HA HA HA HA

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  11. इस लेख को बहुत देर से देख पाया। लेख का अध्ययन करने के पश्चात अति प्रसन्न मुद्रा में 'बहुत अच्छा, सुन्दर रचना [श्लेष अलंकार से विरत रहें!:)], हमारे यहाँ भी ऐसा.....' के समान टिप्पणी करने को चला कि अचानक ज्ञान की प्राप्ति हुई:
    " रे मूढ़, जिस व्यक्ति को आधार बना कर यह लेख लिखा गया है, वह कोई और नहीं तू ही है !"

    सन्न रह गया। स्थिति वैसी ही हो गई जैसे उस दिन गड्ढे पर अनजान सज्जन की ब्याख्या सुन हुई थी। क्यों कि इस बार कोई और मुझे 'सज्जन' कह अन्योक्ति अलंकार का प्रयोग कर रहा था।

    धोखा तो उस समय नहीं हुआ था लेकिन इस बार भवे (भोजपुरी में छोटे भाई की पत्नी को भवे कहते हैं) ने बिना मेरा सन्दर्भ दिए मेरे बहाने से चर्चा कर धोखा दिया था। लिहाजा हम जेठ के गुमान में गुस्साय गए। और सोचा कि अगली कड़ी आने दो तो खबर लेंगे।

    लेकिन भवे ने पूरा व्यूह रच रखा था, 'रचना' जो नाम है ! सो शाम को ही फोन आ गया सिद्धार्थ का। बस अब तो निबाहना ही है सो रात को 11 बजे बैठ टिप्पणी लिख रहा हूँ।

    लंठ चर्चा की अगली पोस्ट अब परसो ही आ पाएगी।
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    अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।

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  12. achhaa huaa patnee ne ye post nahin padh lee..warna ise yahan se nikaal kar lamination karwaa ke mere table par chipkaa detee...wakai ye to ghar ghar kee kahanee hai...

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  13. कहानी घर-घर की :)

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  14. मै सोचता था मेरे यहाँ ही ऐसा होता है

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  15. घर घर की कहानी!!
    कहीं नई तो कहीं पुरानी!!!

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  16. bachhe to kya ?ab to is blog ke chakkar me bde bde bhi nhi chahte ki ghar me koi mehman aaye .
    bhut acha likha hai .
    shubhkamnaye

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  17. क्या कहूँ, बस मज़ा आ गया. इतना ही कहूँगा " देर आये -दुरुस्त आये ".

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  18. ha ha ha....maja aa gaya .blogging ne aapko samaj-sastri bana diya hai.badhai ho

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