Wednesday, November 19, 2014

लैंगिक समानता की कठिन राह

एक पुरुष किसी स्त्री के साथ जब  प्रेम में होता है तो वह उसके साथ “संभोग” करता है और जब नफरत करता है तो उसका “बलात्कार” करता है..ऐसा क्यों? नफरत की स्थिति में भी वह एक स्त्री को देह से इतर क्यों नहीं सोच पाता? अगर समाज का बदलता स्वरूप आज भी वही है जो सदियों पहले था तो यह स्पष्ट है कि पुरुष की सोच आज भी प्रधान है। अगर कुछ बदला है तो वो स्त्रियों का मुखर होना। आज के दौर में स्त्रियां अपने शोषण/ बलात्कार के बाद चुप बैठकर सुबकती नहीं, बल्कि चिल्लाती हैं।

इस बदलते परिवेश में अधिकांश पुरुष आज भी स्त्री को पितृसत्ता की जागीर ही समझते हैं। उसे अपनी इज्जत का डर ना हो तो मौका मिलने पर आज भी वह अपने इर्द-गिर्द एक नहीं हजार स्त्रियों को नंगा ही देखना पसंद करे। मगर जब एक स्त्री स्वेच्छा से अपनी पसंद के वस्त्र पहनती; अपने पसंद के लड़के/पुरुष के साथ घूमने जाती; एकांत में अपने प्रेमी के साथ समय बिताना चाहती है तो इसी समाज के पुरुष वर्ग को आपत्ति होने लगती है। इसमें उन्हें अपनी संस्कृति का ह्रास दिखाई देने लगता है। ऐसे लोग एक स्त्री को लांछित करते हुए यह भी कहने से नहीं चूकते कि “जब लड़की/स्त्री एकांत में एक (अपने किसी प्रेमी)  के साथ प्रेमालाप कर सकती या सो सकती है तो चार और के साथ उसे सोने में क्यों आपत्ति है? ऐसे में उसके साथ बलात्कार होना तो स्वभाविक है” क्योंकि ‘‘मर्द तो मर्द होता है।’’ इस समाज की यह सोच आज भी बताती है कि- पुरुष ही प्रधान है!

बहुत दिनों से ऐसे कईं सवाल मेरे जेहन में खटकते हैं जिसका जवाब ढूंढने की कोशिश करती हूँ तो यही मिलता है- पुरुष की अपनी ‘सोच’ और उसका अपना ‘सुख’ ही आज भी सर्वोपरी है। भले से इसके लिए उसे एक नहीं सैकड़ों स्त्रियों की देह से होकर गुजरना पड़े।

किसी के साथ आपसी रंजिश हो तो इस समाज का एक पुरुष वर्ग ‘माँ-बहन’ की गालियां देने से नहीं चूकता; और जब दोस्तों के साथ हंसी-ठिठोली भी करता है तब भी माँ-बहन ही करता फिरता है। पुरुषों को इसकी स्वतंत्रता किसने दी.. क्या हमारी संस्कृति में कहीं भी यह लिखा है.. किसी ने कहीं पढा़ है तो जरा बताए.. ?  या फिर कानून इन्हें गाली देने  के इजाजत देता है…?

ऐसा लोग कहते हैं कि- “शारीरिक सबंध बनाने के बाद एक स्त्री के लिए पुरुष का प्रेम और प्रगाढ़ हो जाता है।” तो किसी  स्त्री के साथ बलात्कार करने के बाद एक पुरुष के अंदर प्रेम क्यों नहीं उपजता..? बलात्कार के बाद वह एक स्त्री को मार-काट देने अथवा हत्या कर देने जैसा जघन्य अपराध क्यों कर बैठता है..? जानवर भी एक पल के लिए इस तरह का दुष्कृत्य करने से पहले ठिठक जाए।

घर से दफ्तर तक महिलाओं की स्थिति में पहले से सुधार आया है। लड़कियों की शिक्षा में बराबरी का अधिकार; नौकरी में भी लड़कियों को उतना ही अधिकार दिया गया है जितना कि लड़कों को दिया गया। इन दिशाओं में बदलाव निस्संदेह आया है। लेकिन इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है - लगातार बढ़ते उपभोक्तावाद में घर-परिवार की आर्थिक जरूरतों का बढ़ता जाना । जबतक स्त्री/ पुरुष दोनों शिक्षित नहीं होंगे; रोजगारशुदा नहीं होगे तबतक एक परिवार के लिए सामान्य जीवन जीना भी मुश्किल होगा। इस बदलाव में हमें लैंगिक समानता की उत्कंठा कम और मजबूरी ज्यादा झलकती है। यदि ऐसा नहीं है तो उसे स्वेच्छा से कपड़े पहनने; प्रेम करने; अपनी मर्जी से शादी करने; अपने किसी पुरुष से मित्रवत बात करने के सवाल पर यह समाज क्यों बौखला उठता है; जो कथित रूप से बदल रहा है?

(रचना त्रिपाठी)

 

7 comments:

  1. अच्छा लिखा है।बदलाव आ रहे हैं लेकिन अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है।

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  2. समाज का दुखद पक्ष जो शायद ही कभी बदले ।
    विचारणीय पोस्ट है

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  3. हमारे समाज का कड़वा सच .....सोचने को विवश करता लेख !

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  4. जबतक स्त्री/ पुरुष दोनों शिक्षित नहीं होंगे; रोजगारशुदा नहीं होगे
    >> शिक्षित होना साक्षर होना नहीं है . रोज़गारशुदा होना आत्मनिर्भर होना नहीं है

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    1. शिक्षित होना मात्र साक्षर होने से बेहतर है। रोजगारशुदा होने के बाद आत्मनिर्भरता आ ही जाती है। आत्मनिर्भर होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि सबसे संबंध समाप्त हो जाय। संबंधों की दूसरी मेरिट भी होती है। रोजगारशुदा हो जाने पर संबंधों में कदाचित मजबूरी के बजाय बराबर का सम्मान प्रभावी हो जाता है।

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  5. आप और हम जिस संकृति की बात करते है वही संकृति ने ही पुरुष- स्त्री,बेटा -बेटी ,में अंतर करना सिखाया है |पति को परमेश्वर का दर्जा किया है और पत्नी को दासी कहा है ! परिवर्तन तभी आएगा जब ऐसे विचार के पोषक व्यक्ति या शास्त्रों का बहिष्कार करें !
    आईना !

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