Saturday, July 12, 2014

गरीबों के अच्छे दिन

इस बार के बजट में सरकार द्वारा गरीबों की स्वास्थ्य सेवाओं पर दिखाये गये रहमों-करम को देखकर यह कहा जा सकता है कि गरीब मजदूर, ठेले-खोमचे वाले, रिक्शा चालक, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के भी अच्छे दिन आ गए हैं। इन्हें टैक्स-वैक्स से तो कोई वास्ता है नहीं। वरना यह बीमारी इन गरीबों के लिए लाइलाज ही साबित होती। इसके बावजूद कुछ लोगों का कहना है- ‘बेचारे इनके तो अच्छे दिन अभी गच्चे में हैं !’ ये क्या जाने अर्थ व्यवस्था का विकास…? इन्हें तो पता है बस वही ‘माटी –कानों और रोटी-पानी !’

गरीबी तो खुद ही एक बीमारी है लेकिन सरकार ने सोचा कि इस बीमारी का एक बड़ा कारण है नशा ! जैसा कि कई बार सर्वेक्षणों में भी देखा गया है- गुटका, खैनी, तंबाकू इत्यादि का सेवन गरीब तबके के लोग ज्यादा करते हैं। कारण जो भी हो, मुझे तो लगता है ये वर्ग अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छी तरह से न कर पाने की वजह से इन नशीले पदार्थों का सेवन मजबूरी में करते हैं। अज्ञानता वश कहें या अपना ग़म गलत करने के लिए। यह भी सुना है कि इन पदार्थों का सेवन करने के बाद भूख कम हो जाती है। लेकिन इससे ये भयंकर बीमारी की चपेट में भी आ जाते हैं। अच्छा हुआ जो ये नशीले पदार्थ महंगे हो गए। पेट के वास्ते कुछ तो संयम इन्हें भी बरतना ही पड़ेगा। भले ही नशे की महंगाई की वजह से मजबूरी वश ही सही!

इन सभी समस्याओं को देखते हुए सरकार ने जो कदम उठाएं हैं उसे अच्छा ही कहेंगे। ऐसे लोग जूते-चप्पल पहने ना पहने क्या फर्क पड़ता है इन पर। मगर अपने ‘पेट’ को कहां रखे बेचारे! जहां जाते है वहीं गले पड़ा रहता है। अगर पेट में कुछ नहीं गया तो इनका और इनके बच्चों का क्या होगा…? फिर तो ये कुपोषण के शिकार हो जाएंगे, ऐसे में इस सरकार का इनकी स्वास्थ्य की ‘चिंता’ करना बहुत बड़ी बात है। इस पर भी अगर लोग कहें कि इन बेचारों के अच्छे दिन तो अभी पिच्छे ही हैं तो यह सरकार के साथ नाइंसाफी ही कही जाएगी…

गरीब वर्ग जो दो वक्त की रोटी-प्याज का जुगाड़ न कर पाए तो उसे सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में मिलने वाली ‘मल्टी-विटामिन्स’ की गोलियाँ किस दिन काम आएंगी? आखिर इसी दिन के लिए तो ये सुविधाएं उपलब्ध करायी गई हैं। जितना दिन मेहनत-मजदूरी करके मिले, रोटी-प्याज खाएं… न मिले तो सरकार द्वारा उपलब्ध मल्टी-विटामिन्स का सेवन करें…भूख से पेट में मरोड़ होने लगे, सिर चकराने लगे या गला सूखने जैसा कुछ लक्षण दिखने लगे तो सरकारी अस्पताल में उपलब्ध मुफ्त के बिस्तर पर लेट जाएँ और “बोतल” चढ़वाएं। बोतल यानि  “ग्लूकोज़ ड्रिप”। इससे भी बात न बने तो तेल और माचिस भी तो सस्ते हो गये…! “ना रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी”

(रचना त्रिपाठी)

7 comments:

  1. सार्थक पोस्ट ... सकारात्मक बिंदु भी तो हैं , हमें देखना समझना होगा

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  2. इस देश की सारी राजनीति ही गरीबी तुष्टिकरण की है -गरीब बेफिक्र हैं -उनसे पूछिए तो !

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  3. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन प्राण साहब जी की पहली पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. अच्छे दिनों की अच्छी रचना :)

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  5. अब रोटी के साथ प्याज कहाँ नसीब होगा ? रोटी मिल जाय ,यही काफी |
    नई रचना मेरा जन्म !

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  6. बहुत सही कहा इसे देश के हर प्रधानमंत्री को पढ़ना चाहिए। सपने दिखाना और हक़ीकत में कुछ करना यह दोनों अलग बाते हैं

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