Saturday, December 11, 2010

राम दुहाई राम दुहाई राम दुहाई भाई जी

आज अचानक कैलाश गौतमजी की एक कविता हाथ लग गयी। इसे पढ़कर मैं हैरत में पड़ गयी। मुझे नहीं मालूम कि इसे किस संदर्भ में उन्होंने लिखा था लेकिन मुझे विश्वास है कि आज भी आपको अपने आस-पास ऐसे चरित्र मिल सकते हैं। लीजिए आप लोगों के लिए प्रस्तुत है ये मंचीय कविता :


राम दुहाई राम दुहाई राम दुहाई भाई जी
आपके मुँह पर आपकी कितनी करूँ बड़ाई भाई जी।

गिरगिट को भी आपने पीछे छोड़ा रंग बदलने में
कोई सानी नहीं है मुँह पर कालिख लेकर चलने में
ठाकुर के घर में न रही ऐसी ठकुराई भाई जी।

गुड़िया बनकर बुढ़िया निकली खैर नहीं है बप्पारे
सोने की पायल के लायक पैर नही है बप्पारे
घर में केवल आग लगाने दुलहिन आई भाई जी।

नाक कटाकर बड़ी बहू अब नथ गढ़वाने बैठी हैं
कितने भर सोने का होगा वजन बताने बैठी हैं
रह-रहकर झनकातीं चूड़ी भरी कलाई भाई जी।

क्या कोई सुख-दुख बाँटेगा जैसा आपने बाँटा है  
सबके मन में चोर बसा है सबके मन में काँटा है
आपसे बढ़कर कौन दूसरा हातिमताई भाई जी।

कितना बड़ा पेड़ था कल तक अब है बेट कुल्हाड़ी का
बिका कसाई बाड़े जाकर फाटक ठाकुरवाड़ी का
हम सब भेंड़ बकरियों में हैं आप कसाई भाई जी।

 

6 comments:

  1. हामरे आस पास तो ऐसे चरित्र है.. इसलिए पढ़कर मुस्कुराये भी हम तो.. इसी बात पे कैलाश गौतम जी को धन्यवाद् और साथ ही आपको भी.. पढवाने के लिए..

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  2. सचमुच बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...पढ़वाने के लिए आभार ...

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  3. बहुत ही धारदार प्रस्तुति है। पढ़वाने का आभार।

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  4. भाई जी की महिमा सुनकर हम हतप्रभ हैं।

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  5. बहुत दिनों बाद ब्लोगिंग की दुनिया में आपको सक्रिय देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। कैलाश गौतम जी हिन्दी और भोजपुरी के बडे और सशक्त गीतकार थे। अभी एकाध साल पहले ही वे एकाएक हमसे बिछुड गये। इस गीत ने फिर से उनकी यदें ताजा कर दी हैं। कैलाश गौतम जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

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  6. कैलाश गौतम का सटीक प्रेक्षण और कटाक्ष ,आपकी प्रस्तुति -आनंद आ गया ..
    खुद भी लिखती रहिये और सिद्धार्थ जी को भी लिखाती रहिये ...

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