tag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post4653470545502003245..comments2024-02-20T18:32:58.638+05:30Comments on टूटी-फूटी: जिस दिन एक गृहिणी के कार्यों को महत्व मिलने लगेगा उसी दिन नारीवादी आन्दोलन समाप्त हो जायेगा…।रचना त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/12447137636169421362noreply@blogger.comBlogger61125tag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-69161659482380095602019-10-21T09:16:38.948+05:302019-10-21T09:16:38.948+05:30लेख मे चिन्तन की प्रोढ़ता है संदेश और संकेत शुभ है...लेख मे चिन्तन की प्रोढ़ता है संदेश और संकेत शुभ है साधुवाद.कल्पना लोक प्रकाशनhttps://www.blogger.com/profile/17253914463553187210noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-8661345061135489102014-05-01T18:43:18.199+05:302014-05-01T18:43:18.199+05:30बहुत बढ़िया....बहुत बढ़िया....कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-56943728359311188852010-05-22T18:30:50.204+05:302010-05-22T18:30:50.204+05:30पता है बहुत देर से आ रहा हू.. लेकिन कुश की तालिया ...पता है बहुत देर से आ रहा हू.. लेकिन कुश की तालिया खत्म होते ही मेरी भी सुनियेगा..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-61891060576131403912010-03-28T10:16:42.150+05:302010-03-28T10:16:42.150+05:30गिरिजेश के दिए लिंक से यहाँ आया। बहस सही लगी। गुस्...गिरिजेश के दिए लिंक से यहाँ आया। बहस सही लगी। गुस्सा भी आया कि लोग अपनी कायरता के खोल से बाहर क्यों नहीं आ पाते?<br /><br />http://benamee.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.htmlबेनामीhttps://www.blogger.com/profile/10555797016317745618noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-18572371438241937542010-01-13T16:20:28.541+05:302010-01-13T16:20:28.541+05:30Achhi post. aaj bahut din bad blog jagat se judne ...Achhi post. aaj bahut din bad blog jagat se judne ka mauka mila aur bahut sari achhi posten bhi padhne ko milin. swatantra apne aap me ek achhi chij hai lekin swatantra kabtak? aur kaha tak? ye bat well define honi chahiye.Harshkant tripathihttps://www.blogger.com/profile/15441547683065761377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-75408212979288727522010-01-08T18:33:50.960+05:302010-01-08T18:33:50.960+05:30"घर के कुशल संचालन और बच्चों की उचित परवरिश क..."घर के कुशल संचालन और बच्चों की उचित परवरिश का काम समाज और राष्ट्र के निर्माण की पहली शर्त है।" पूर्ण सहमति. सच्चा और सोने जैसा खरा आलेख. सपरिवार नव वर्ष २०१० की मंगल कामना के साथ.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-43986046347163880682009-12-31T22:57:17.743+05:302009-12-31T22:57:17.743+05:30वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
-नव वर्ष, २०१० के लिए अ...वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव<br />-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,<br />डॉ मनोज मिश्रडॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-65328859143561228462009-12-29T16:58:26.431+05:302009-12-29T16:58:26.431+05:30परिवार का पालन एक नियोजित श्रम है,
इसमें शारीरिक श...परिवार का पालन एक नियोजित श्रम है,<br />इसमें शारीरिक श्रम के साथ मानसिक उद्दात भावनाओं को भी अत्यधिक परिश्रम करना होता है. किसी आठ घंटे की एक पाली के समाप्त होने की कोई गुंजाईश नहीं है और साल के अंत में तीस तो क्या एक भी अर्जित अवकाश खाते में नहीं होता. समझते हैं पर जताना नहीं चाहते...<br />बहुत सुंदर पोस्ट.<br /><br />आप शायद सबसे बाएं हैं ?के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-83943793231353390762009-12-29T12:32:11.661+05:302009-12-29T12:32:11.661+05:30lamba intjar karaya aapne par ek sarthak post padh...lamba intjar karaya aapne par ek sarthak post padhakar achchha laga.aisi poston ke liye intjar kiya ja sakata hai par thodi jaldi ho to behtar hoga.balmanhttps://www.blogger.com/profile/18198707162193691860noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-36038090053367806952009-12-24T15:19:36.131+05:302009-12-24T15:19:36.131+05:30एक बेहद सार्थक लेख लिखा आपने, इसके लिए बधाई।
आपसे ...एक बेहद सार्थक लेख लिखा आपने, इसके लिए बधाई।<br />आपसे कई मुद्दों पर पूर्ण सहमत हूँ लेकिन शादी के बाद महिलाएं स्वतंत्र हो जाती है इस बारे में वंदना अवस्थी दूबे ने ठीक ही कहा है कि यह परिस्थितिजन्य है। एक बात और,मेरी समझ से नारीवादी आंदोलन पुरुषवादी मानसिकता का विरोध करता है और यह पुरुषवादी मानसिकता नारी के अंदर भी हो सकता है...Unknownhttps://www.blogger.com/profile/01747864848917170865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-44524915273000235922009-12-23T23:08:57.412+05:302009-12-23T23:08:57.412+05:30रचनाजी
सशक्त आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई |रचनाजी<br />सशक्त आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-71173489870281258882009-12-23T19:11:17.184+05:302009-12-23T19:11:17.184+05:30अमरेन्द्र जी इस बात में दम है सफल गृहणी ' और
&...अमरेन्द्र जी इस बात में दम है सफल गृहणी ' और<br />' अधिकार प्राप्त नारी ' में फर्क है ,. घर में नारी को महत्व देना तथा<br />राज -व्यवस्था , समाज - व्यवस्था और अर्थ - व्यवस्था में नारी को<br />महत्व देना एक जैसा नहीं है .....<br />सच तो यही है हम आज भी पितृसत्तात्मक समाज का हिस्सा है ओर इसे ज्यूं का त्यूं बनाये रखना चाहते है ..महत्वपूर्ण बात ये है के सफल ग्रहिणी के काम को हम उसका कर्तव्य मानते है ...ओर यही उससे उम्मीद करते है ...ओर उसके कुछ दुखो को हम दुःख भी नहीं मानते ....अगर किसीसमाज को मजबूत करना है तो मां को मजबूत करना होगा ..मां तभी मजबूत होगी जब बेटी मजबूत होगी ..... <br />फिर भी अच्छा लगा ये विमर्श भीडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-89916883125272315342009-12-23T12:51:59.916+05:302009-12-23T12:51:59.916+05:30अच्छा लगा विमर्श, और सार्थक भी रहा....इसपर पोस्ट ल...अच्छा लगा विमर्श, और सार्थक भी रहा....इसपर पोस्ट लिखूंगी ...धन्यवाद रचना जी और गिरिजेश जी आपका भी. :-)L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-90273530090433710392009-12-23T11:37:53.258+05:302009-12-23T11:37:53.258+05:30"हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। अपने घर से शुरुआत कर..."हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। अपने घर से शुरुआत करें।"<br /><br />यही निष्कर्ष है - विमर्श सफल रहा।Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-48235535759081052412009-12-23T09:25:02.770+05:302009-12-23T09:25:02.770+05:30हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। अपने घर से शुरुआत करें।<b>हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।</b> अपने घर से शुरुआत करें।रचना त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/12447137636169421362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-74791215415915928272009-12-23T09:21:49.263+05:302009-12-23T09:21:49.263+05:30प्रिय भाई कार्तिकेय,लगता है तुमने मेरी पोस्ट जल्दी...प्रिय भाई कार्तिकेय,लगता है तुमने मेरी पोस्ट जल्दीबाजी में पढ़ी। मैने नारीबादी आंदोलन के समाप्त होने की जो शर्त बतायी है उसका पूरा हो जाना आसान है क्या? कितने सिंहासन हिल जायेंगे, छातिया दरक जायेंगी, भूचाल आ जायेगा इस पुरुषप्रधान समाज में जब एक गृहिणी का कार्य बराबर की महत्ता पाना लगेगा। कागज पर बड़े-बड़े सिद्धांत लिखना और मंच पर भाषण देना आसान है पर अमल करना उतना ही मुश्किल।<br /><br />विवाह नामक संस्था को त्यागने की बात करने वाले जबतक इसका बेहतर विकल्प नही लाते तब-तक उनकी बाते बेमानी हैं। हो सकता है जो इससे बाहर हैं वो भी अपने हिसाब से सुखी होंगे, लेकिन वे बहुत कुछ ‘मिस’ भी करते है जिसका उन्हें शायद पता ही नही होगा। अपनी आदिम प्रवृत्तियों को नियंत्रित न कर पाने कि आशंका तुम्हारे पलायनवाद को दर्शाती है, सामाजिक जिम्मेदारी के भाव को नही।रचना त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/12447137636169421362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-76030023873170226882009-12-23T08:03:14.524+05:302009-12-23T08:03:14.524+05:30कितना सुन्दर और प्रखर विमर्श हुआ है यहाँ -संतुष्ट...कितना सुन्दर और प्रखर विमर्श हुआ है यहाँ -संतुष्टिदायक !<br />पारिवारिक समरसता की भी तो कोई सुधि ले !<br />श्रीश जब वाचस्पति बनते हैं जो वे वस्तुतः हैं भी तो सुन कर तालियाँ बजाने का मन करता है !<br />गिरिजेश भोगे देखे अनुभूत यथार्थ को व्यक्त कर देते हैं<br />बाकी नर नारी प्रतिक्रियात्मक हो रहे हैं !<br />पर देवियों सज्जनों! हम समरसता , समर्पण त्याग की अब बात क्यों नहीं करते ?<br />क्या मानव प्रजाति अब इतनी कृतघ्न हो गयी ?<br />जब तक नर नारी का एक दूसरे के प्रति अन्यतम अनुराग है ,प्रेम है और एक दुसरे के प्रति मर मिटने की प्रतिबद्धता है<br />यह दुनिया तभी तक सलामत है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-17879712624562752592009-12-23T07:32:51.724+05:302009-12-23T07:32:51.724+05:30@ लवली जी
ऐ दोस्त न ढूँढ़ मेरे हरफों में वो: बात...@ लवली जी <br />ऐ दोस्त न ढूँढ़ मेरे हरफों में वो: बात<br />जो लिखी न गई वो: बात है ही नहीं । <br />सामने देख अगल बगल औ' पीछे भी<br />दिक्खे साफ,ऐनक आँखों पर है ही नहीं। <br />माना कि दुश्वारियाँ हैं, है शब्दों की जमीं<br />दूर तलक जाएगी,वो: बात जो है ही नहीं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-57462881320994285972009-12-23T00:52:38.562+05:302009-12-23T00:52:38.562+05:30बहुत बातें हो गईं लोगों में, लेकिन सार्थक कितनी??
...बहुत बातें हो गईं लोगों में, लेकिन सार्थक कितनी??<br /><br />रचना दी, यहाँ तुमसे असहमति जताना चाहूँगा! मेरी मान्यता है कि विवाह नामक संस्था ही नारी शोषण का सबसे बड़ा जरिया है.. आर्थिक रूप से पिछड़े समाजों में दहेज की माँग और तथाकथित मॉडर्न समाजों में इंग्लिशस्पीकिंग गोरी लड़की की माँग से निबटने के बाद कोई लड़की अगर ससुराल में पहुँचती भी है, तो सर्वाइवल के लिये अपने आत्मसम्मान को कुचलना कितना जरूरी होता है, यह तथ्य शायद सबको पता होगा। मैं जनरलाइज नहीं कर रहा.. एक्सेप्शंस आर आल्वेज देयर! लेकिन समाज के बहुत बड़े तबके की बात कर रहा हूँ, जिसे अपने निर्गुण, नकारा लड़के के लिये भी ‘सर्वगुणसम्पन्न’ ‘गोरोचन सी गोरी’ लड़की चाहिये- भले ही लड़का काकभुशुण्डि का अवतार हो! ब्राह्मण कर्मकांड के आतंकित करने वाले मंत्र कानों को भले ही सुखद लगें, लेकिन नारी को बराबरी का अधिकार कहाँ देते हैं??<br /><br />क्यों स्त्री को बार-बार खुद को तवज्जो देने की गुहार करनी पड़ती है? यह अधिकार लेने के लिये सविनय अवज्ञा के नारीवादी आंदोलन को एक जरिये से मैं ग़लत नहीं मान सकता।<br /><br />मैं भी इसी पितृसत्तात्मक समाज का एक अंग हूँ..कल हो सकता है मेरी आदिम प्रवृत्तियां अपनी पत्नी को वही अधिकार देने में आड़े आ जायें जिनकी आज मैं वक़ालत कर रहा हूँ.. निस्संदेह यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा, कदाचित पशुवत होने जैसा. उस समय उस स्त्री को अपना अधिकार लेने के लिये मेरे सामने अनुरोध करने की जरूरत नहीं.. अधिकार चाहिये तो उसे लड़कर लेना होगा और मेरी आज की सोच इस बात की तस्दीक भी करेगी।<br /><br />विवाह नामक संस्था के दिन गिने हुए हैं... गिरिजेश जी से पूरी तरह सहमत. विदिन फिफ्टी ईयर्स इसकी जगह एक ऐसा रिश्ता लेगा, जिसकी बुनियाद स्वार्थ नहीं, बल्कि म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग और कॉमन रिस्पांसिबिलिटी पर टिकी होगी.. <br /><br />मानवीय रिश्तों के इसी भविष्यत से बराबरी संभव है.. कोई पुरुष सत्ता को इतनी आसानी से शेयर करने वाला नहीं। इस समाज में जींस पहनकर हॉलीवुड मूवी देखने वाली लड़की को न तो सभ्यता विरोधी ठहराया जायेगा, न ही केवल ‘अर्धांगी(माई फुट!)’को दिन रात बर्तन घिसने होंगे।कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-12548172253432914972009-12-23T00:51:04.894+05:302009-12-23T00:51:04.894+05:30This comment has been removed by the author.कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-64561532646344014882009-12-22T23:21:27.505+05:302009-12-22T23:21:27.505+05:30मुझे आपका intention ठीक लगा..पर मुझे कहना होगा कि ...मुझे आपका intention ठीक लगा..पर मुझे कहना होगा कि जिस तरह के नारीवादी आंदोलनों के एकतरफ़ा पैटर्न के प्रतिक्रियास्वरुप आपने यह आलेख लिखा है यह भी एक दूसरे तरह से एकतरफ़ा हो चला है...<br /><br />एक गृहणी जो संतुष्ट है..समस्त जिम्मेदारियाँ निभाती है,घर,परिवार की व्यापक महत्ता समझती है..देश और समाज की आवश्यकताओं के मध्य अपनी भूमिका भी समझती है ..निश्चित ही आदर्श है..नारीवादी आंदोलन इस नारी के ख़िलाफ़ नही है..पर यही नारी जब स्कूटी पर जीन्स कसे किसी थियेटर मे हॉलीवुड मूवी देखने जाना चाहती है तो एक समूची संस्कृति के ढहने का संकट आ जाता है तो ये भी तो ठीक नही...गृहणी जब घर मे नए समय के साथ परिवार के सदस्यों के लिए एक बदली हुई प्रासंगिक भूमिका की अपेक्षा रखती तो कुछ थातियों के चरमरा जाने का संकट क्यों होने लगता है और किसी तात्कालिक भय,डर अथवा नुकसान का कारण उस गृहणी की आधुनिक मानसिकता के मत्थे यदि डाल दिया जाने लगे तो क्या गृहणी का चुप रह जाना ठीक रहेगा...!<br /><br />भाई अमरेन्द्र जी की चिंता बेहद वाज़िब है.....नारीवादी आंदोलन की बेहद सीमित भूमिका आपने ले ली है..यह एक बार फिर से गलत होगा. तथाकथित आंदोलन-वीरांगनाओं/वीरों की बात जाने दीजिये पर अपने-आप मे नारीवादी आंदोलन की प्रासंगिकता कहीं से भी कम नही है. हो सकता है इसकी दशा या दिशा ठीक ना हो पर इस मुहिम का बने रहना और अपने व्यापक विमाओं मे बने रहना बेहद ही जरूरी है....!Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-60076367538418171962009-12-22T22:29:40.242+05:302009-12-22T22:29:40.242+05:30@गिरिजेश जी - क्या ऐसा हो सकता है कि राज्य शिशुओं...@गिरिजेश जी - क्या ऐसा हो सकता है कि राज्य शिशुओं का पालन पोषण करे, नर नारी अपनी सुविधा और सहमति के रहते तक साथ साथ रहें और फिर चल दें अलग अलग राहों पर। संतान हो तो राज्य सँभाले। <br />आप सिर्फ यह बताइए किस "तथाकथित नारीवादी" ने ऐसा कहा जिसे आपने यहाँ उल्लेखित किया है ..और रही बात बाकि बिन्दुओं पर विमर्श की ....मैं उसपर चर्चा करुँगी...जरा यह अवचेतन वाली लेखमाला निपटा लूँ ..विलंब संभव है ..आपकी टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी करने का कारन सिर्फ यह था की मुझे आपके द्वारा उठाये गए कई बिंदु चर्चा योग्य लगे ..पर यह बात जो मैंने ऊपर लिखी खीज का परिणाम(मैं गलत हो सकती हूँ क्योंकि स्क्रीन पर मुझे सिर्फ शब्द दिखाते हैं) लगी.<br />चर्चा ही हम भी चाहते हैं..या कहा जाए तो चर्चा ही चाहते हैं ..पर लोग अक्सर व्यक्तिगत हो जाते हैं..जो किसी भी संतुलित व्यक्ति को नागवार गुजरेगा.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-27421699046445183272009-12-22T21:39:39.238+05:302009-12-22T21:39:39.238+05:30संविधान में अधिकारों के साथ कर्तव्यों की चर्चा हुई...संविधान में अधिकारों के साथ कर्तव्यों की चर्चा हुई तो बहुत हांव हांव मची थी।<br />पर ड्यूटी बिना राइट्स क्या होते हैं!?Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-89741336310825501932009-12-22T20:06:42.399+05:302009-12-22T20:06:42.399+05:30सही एवं सुलझे हुए विचारों को प्रस्तुत करता आपका यह...सही एवं सुलझे हुए विचारों को प्रस्तुत करता आपका यह सार्थक आलेख प्रभावित करता है.<br /><br />आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ.<br /><br />सभी लोग इस तरह खुली और स्वच्छ सोच से लिखें तो समस्या का निदान भी हो जाये और कोई विवाद न हो.<br /><br /><br />अनेक शुभकामनाएँ.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1250026273991753826.post-78561353998100719242009-12-22T19:43:35.320+05:302009-12-22T19:43:35.320+05:30@ भावुकता
अशांति
गुस्सा
खीज
बहुत ढूढ़ा अपनी टिप्प...@ भावुकता <br />अशांति<br />गुस्सा<br />खीज<br />बहुत ढूढ़ा अपनी टिप्पणी में लेकिन नहीं मिल पाए। उस समय की मनोदशा के उपर भी विचारे, ऐसा कुछ याद नहीं आया। बस टिप्पणी में एक जगह 'पर' की जगह 'का' होना चाहिए। खैर, दिव्य दृष्टि प्राप्त लोग भी चूक कर ही जाते हैं। :) चिह्न भी नहीं दिखा। इस तरह की चूकें बहुत बार बात को पटरी से उतार चुकी हैं। लेकिन इस बार नहीं .... टिप्पणी करने वाले की मनोदशा पर 'अनुमान शास्त्र' का प्रयोग करने के बजाय उसमें उठाए गए मुद्दों पर मनन विवेचन हो तो बात बने।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com